Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४८६ अर्थ:-अद: स्थाने विकल्पेन घस्तृ-आदेशो भवति, लिटि आर्धधातुके विषये।
उदा०-(१) घस्लु-आदेश:-जघास । जक्षतुः । जक्षुः । (२) न च घस्लु-आदेश:-आद। आदतु: । आदुः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(अद:) अद् धातु के स्थान में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (घस्तृ) घस्तृ आदेश होता है (लिटि) लिट्लकार सम्बन्धी (आर्धधातुके) आर्धधातुक विषय में।
उदा०-(१) घस्न आदेश-जघास । उसने भोजन किया। जक्षतुः । उन दोनों ने भोजन किया। जक्षुः । उन सबने भोजन किया। (२) घस्तृ आदेश नहीं-आद । आदतुः । आदुः । अर्थ पूर्ववत् है।
सिद्धि-(१) जघास । अद्+लिट् । घस्तृ+तिप्। घस्+णल्। घस्+घस्+अ। घ+घस्+अ। ज+घास्+अ। जघास।
यहां 'अद् भक्षणे (अदा०प०) धातु से 'परोक्षे लिट्' (३।२।११५) से लिट् प्रत्यय, परस्मैपदानां णलतुसुस०' (३।४।८२) से तिप् के स्थान में णल् आदेश, लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१८) से धातु का द्वित्व, 'अत उपधायाः' (७।२।११६) धातु को उपधावृद्धि और कुहोश्चुः' (७/४/६२) से धातु के अभ्यास घकार को जकार आदेश होता है। यहां लिट् आर्धधातुक विषय में इस सूत्र से अद् धातु के स्थान में घस्तृ आदेश है।
(२) आद। अद्+लिट् । अद्+तिम् । अद्+णल्। अद्+अद्+अ । अ+आद्+अ। आद।
यहां विकल्प पक्ष में लिट्सम्बन्धी आर्धधातुक विषय में अद् धातु के स्थान में घस्तृ आदेश नहीं है। शेष कार्य पूर्ववत् है। वेञ् (वा वयिः)
(७) वेस्रो वयिः।४१। प०वि०-वेञ: ६१ वयि: १।१। अनु०-आर्धधातुके लिटि, अन्यतरस्याम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-वेञोऽन्यतरस्यां वयिलिटि आर्धधातुके।
अर्थ:-वेञ: स्थाने विकल्पेन वयिरादेशो भवति, लिटि आर्धधातुके विषये।
उदा०-(१) वयि-आदेश:-उवाय। ऊयतुः। ऊयुः ।। ऊवतुः । ऊवुः । न च वयि-आदेश:-ववौ। ववतुः । ववु: ।
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