Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 529
________________ ४८८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) घस्ताम् । इद्+लुङ्। घस्लु+च्लि+लुड्। घस्+o+तस् । घस्+ताम्। घस्ताम्। यहां 'अद् भक्षणे' (अदा०प०) धातु से लुङ् (३।२।११०) से भूतकाल में लुङ् प्रत्यय, लि लुडि (३।१।४३) से चिल प्रत्यय, इस आर्धधातुक प्रत्यय के विषय में इस सूत्र से अद् धातु के स्थान में घस्लु आदेश होता है। 'मन्त्रे घसहरणशवदहावचकृगमिजनिभ्यो ले:' (२।४।८०) से चिल' प्रत्यय का लुक है। 'तस्थस्थमिपां तान्तताम:' (३।४।१०१) से 'तस्' के स्थान में ताम्' आदेश है। बहुलं छन्दस्यमाङ्योगेऽपि (६।४।७५) से लुङ्' में 'अट्' आगम नहीं होता है। घस्ताम्-उन दोनों ने भोजन किया। (३) सन्धिः । अद्+क्तिन् । घस्तृ+ति । घस्+ति। घ्स्+ति। घ्स्+धि। घo+धि। ग्+धि। ग्धि+सु। ग्धि: । समानाग्धिरिति सग्धिः । __यहां 'अद् भक्षणे (अदा०प०) धातु से स्त्रियां क्तिन् (३।३।९४) से भाव अर्थ में क्तिन् प्रत्यय है। इस आर्धधातुक प्रत्यय के विषय में इस सूत्र से अद् धातु के स्थान में घस्तृ आदेश है। 'घसिभसोर्हलि च' (६।४।१००) से घसृ धातु का उपधा-लोप, झषस्तथो?ऽध:' (८।२।४०) से प्रत्यय के तकार को धकार, 'झलो झलि' (८।२।२६) से घस् धातु के सकार का लोप, झलां जश् झशि (८।४५३) से धातु के घकार को जश् गकार होता है। तत्पश्चात् पूर्वापरप्रथमचरमजघन्यसमानमध्यमध्यमवीराश्च' (२।११५८) से कर्मधारयतत्पुरुष समास होता है। समानस्य च्छन्दस्यमूर्द्धप्रभृत्युदर्केषु' ६।३।८४) से छन्द में समान के स्थान में स-आदेश होता है। सग्धि: समान भोजन। (३) आत्ताम् । अद्+लुङ्। आट्+अद्+च्लि+लुङ्। आ+अद्+सिच्+तस् । आ+अद्+o+ताम् । आ+अत्+ताम् । आत्ताम्। यहां 'अद् भक्षणे (अदा०प०) धातु से तुङ् (३।२।१२०) से भूतकाल में लुङ् प्रत्यय, 'आडजादीनाम् (६।४।७२) से धातु को आट् आगम, च्लि लुङि (३।११४३) से च्लि' प्रत्यय, च्ले: सिच् (३।१।४४) से चिल' के स्थान में सिच्' आदेश, 'तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः' (३।४।१०१) से तस् के स्थान में ताम् आदेश झलो झलि (८।२।२६) से 'च्लि' के स् का लोप और खरिच' (८।४।५५) से धातुस्थ दकार को तकार आदेश होता है। यहां बहुल करके अद् के स्थान में घस्लु आदेश नहीं होता है। आत्ताम्-उन दोनों ने भोजन किया। अद् (वा घस्लु) (६) लिट्यन्यतरस्याम् ।४०। प०वि०-लिटि ७।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु०-आर्धधातुके, अद:, घस्तृ इति चानुवर्तते। अन्वय:-अदोऽन्यतरस्यां घस्लु लिटि आर्धधातुके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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