Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) श्वाफलकः । श्वफलक+अण् । श्वाफलक+अ। श्वाफलक+सु । श्वाफलकः । स्वाफलक+इञ्। श्वाफलक+० । श्वाफलक+सु । श्वाफलकः ।
यहां क्षत्रियवाची श्वाफक प्रातिपदिक से गोत्रापत्य अर्थ में ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' (४।१।११४) से गोत्रापत्य अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। इससे युवापत्य अर्थ में 'अत इञ् (४।१।९५) से 'इन्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इस इञ्' प्रत्यय का लुक् हो जाता है।
(३) वासिष्ठः । वसिष्ठ+अण् । वासिष्ठ+अ। वासिष्ठ+सु । वासिष्ठः । वासिष्ठ+इञ्। वासिष्ठ+० । वासिष्ठ+सु। वासिष्ठः।।
यहां ऋषिवाची वसिष्ठ प्रातिपदिक से ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' (४।१।११४) से गोत्रापत्य अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। इससे युवापत्य अर्थ में 'अत इस्' (४।१।९२) से 'इञ्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इस इञ् प्रत्यय का लुक हो जाता है।
(४) बैदः । बिद+अञ् । बैद+अ। बैद+सु । बैद: । बैद+इञ् । बैद+० । बैद+सु।
बैदः।
यहां 'बिद' प्रातिपदिक से गोत्रापत्य अर्थ में 'अनुष्यानन्तर्ये बिदादिभ्योऽज्ञ (४।१।१०४) से 'अञ्' प्रत्यय होता है। यह जित्' प्रत्यय है। इससे युवापत्य अर्थ में 'इत इ' (४।१।९५) से 'इञ्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इस इञ्' प्रत्यय का लुक् हो जाता है।
(५) तैकायनिः। तिक+फिञ् । तैक+आयनि। तैकायनि+सु। तैकायनिः । तैकायनि+अण् । तैकायनि+० । तैकायनि+सु । तैकायनिः ।
यहां तिक' प्रातिपदिक से तिकादिभ्यः फिज्' (४।१।१५४) से गोत्रापत्य अर्थ में फिज् प्रत्यय होता है। इससे युवापत्य अर्थ में तस्यापत्यम्' (४।१।९२) से युवापत्य अर्थ में 'अण' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इस अण्' प्रत्यय का लुक् होता है।
विशेष-(१) गोत्र-व्याकरणशास्त्र में 'अपत्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम् (४।१।१६२) से पौत्र (पोता) की गोत्र संज्ञा है। जैसे गर्ग का पुत्र गार्गि और गार्गि का पुत्र अर्थात् गर्ग का पौत्र 'गार्य' कहाता है। गार्ग्य के युवापत्य को गाायण कहते हैं।
(२) युवा-जब तक गर्ग वंश का कोई वृद्ध पुरुष जीवित रहता है, तभी तक वह चौथा पुरुष युवा (अपत्य) कहाता है- 'जीविति तु वंश्ये युवा' (४।१।१६३)। युवप्रत्ययस्य
(२) पैलादिभ्यश्च ।५६। प०वि०-पैलादिभ्य: ५।३ च अव्ययपदम्। स०-पैल आदिर्येषां ते पैलादयः, तेभ्य:-पैलादिभ्यः (बहुव्रीहिः)। अनु०-यूनि लुक् इति चानुवर्तते।
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