Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 517
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु० - लिङ्गं द्वन्द्वे पूर्ववदिति चानुवर्तते । अन्वयः-छन्दसि विषये हेमन्तशिशिरयोरहोरात्रयोश्च द्वन्द्वे पूर्ववल्लिङ्गम् । अर्थ:- छन्दसि विषये हेमन्तशिशिरयोरहोरात्रयोश्च द्वन्द्वे समासे पूर्ववत् = पूर्वपदस्येव लिङ्गं भवति । परवल्लिङ्गं द्वन्द्वतत्पुरुषयोः’ ( २ ।४ । २६ ) इत्यस्यायमपवादः । 1 उदा०-हेमन्तश्च शिशिरं च तौ हेमन्तशिशिरौ । हेमन्ताशिशिरावृतू वर्चो द्रविणं (यजु० १० | १४ ) । अहश्च रात्रिश्च ते अहोरात्रे । अहोरात्रे द्रवत: संविदाने (अथर्व० १० |७ | ६ ) । 1 ४७६ आर्यभाषा-अर्थ- (छन्दसि ) वेदविषय में (हमन्तशिशिरौ ) हेमन्त और शिशिर और (अहोरात्रे ) अहन् और रात्रि शब्द के (द्वन्द्वे ) द्वन्द्व समास में (च) भी ( पूर्ववत् ) पूर्वपद के समान (लिङ्गम् ) लिङ्ग होता है । उदा० - हेमन्तश्च शिशिरं च तौ हेमन्तशिशिरौ । हेमन्त और शिशिर ऋतु दोनों । वैदिक प्रयोग - हेमन्तशिशिरावृतू वर्चो द्रविणं (यजु० १० | १४) । अहश्च रात्रिश्च ते अहोरात्रे । दिन और रात दोनों। वैदिक प्रयोग- अहोरात्रे द्रवत: संविदाने (अथर्व ० १०/७/६) । सिद्धि- (१) हेमन्तशिशिरौ । हेमन्त+सु+शिशिर + सु । हेमन्तशिशिर + औ । हेमन्तशिशिरौ । यहां द्वन्द्व समास में पूर्वपद हेमन्त शब्द पुंलिङ्ग और उत्तरपद शिशिर शब्द नपुंसकलिङ्ग है। इस सूत्र से समस्तपद, पूर्वपद हेमन्त के समान पुंलिङ्ग होता है। (२) अहोरात्रे । अहन्+सु+ रात्रि + सु । अहरु+ रात्रि । अहउ + रात्रि। अहोरात्र+औ । अहोरात्र + शी । अहोरात्र + ई । अहोरात्रे । यहां द्वन्द्व समास में पूर्वपद अहन् शब्द नपुंसकलिङ्ग और उत्तरपद रात्रि शब्द स्त्रीलिङ्ग है। इस सूत्र से समस्त पद, पूर्वपद अहन् के समान नपुंसकलिङ्ग होता है। यहां अन् शब्द को 'अन्' (८/२/६८) से रुत्व, 'हशि च' (६ 1१1११४) से उत्व और 'आद्गुण:' (६ 1१1८६ ) से गुण रूप एकादेश होता है। छ: ऋतुओं का परिचय यह है (१) वसन्त (चैत्र वैशाख) (३) वर्षा (श्रावण-भाद्रपद) (५) हेमन्त (मार्गशीर्ष - पौष) Jain Education International (२) (४) (६) ग्रीष्म (ज्येष्ठ-आषाढ़) शरद् ( आश्विन - कार्तिक) शिशिर (माघ-फाल्गुन) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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