Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य तृतीयः पादः यहां 'मतिबुद्धिपूजार्थेभ्यश्च' (३।२।१८८) से मन्' धातु से क्त-प्रत्यय वर्तमानकाल में है। उसके प्रयोग में राजन् शब्द में षष्ठी विभक्ति है। यह कर्ता में षष्ठी है। यहां क्तेन पूजायाम्' (२।२।१२) से षष्ठी-समास का प्रतिषेध है।
न लोकाव्ययनिष्ठाखलर्थतनाम्' (२।३।६९) में निष्ठा (क्त) प्रत्यय का ग्रहण होने से क्त-प्रत्यय के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति का प्रतिषेध प्राप्त है अत: इस सूत्र से वर्तमानकाल में विहित क्त-प्रत्यय के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति का विधान किया गया है। यह उक्त प्रतिषेध का पूर्व अपवाद है। क्तस्य प्रयोगे षष्ठी
(२०) अधिकरणवाचिनश्च।६८। प०वि०-अधिकरणवाचिन: ६।१ च अव्ययपदम् ।
अधिकरणं वक्तीति अधिकरणवाची, तस्य-अधिकरणवाचिन: (कृदन्तवृत्तिः)।
अनु०-षष्ठी क्तस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-अधिकरणवाचिनश्च क्तस्य प्रयोगे षष्ठी।
अर्थ:-अधिकरणवाचिनश्च क्तप्रत्ययान्तस्य शब्दस्य प्रयोगेऽपि षष्ठी विभक्तिर्भवति ।
उदा०-इदं छात्राणामासितम्। इदं छात्राणां शयितम् । इदं छात्राणां भुक्तम् ।
आर्यभाषा-अर्थ- (अधिकरणवाचिन:) अधिकरणवाची (क्तस्य) क्त-प्रत्ययान्त शब्द के प्रयोग में (च) भी (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति होती है।
__ उदा०-इदं छात्राणामासितम् । यह छात्रों के बैठने का स्थान है। इदं छात्राणां शयितम् । यह छात्रों के सोने का स्थान है। इदं छात्राणां भुक्तम् । यह छात्रों के भोजन का स्थान है।
सिद्धि-इदं छात्राणमासितम्। 'आस् उपवेशने (अदा०प०)। आस्+क्त। आस्+इट्+त। आस्+इ+त। आसित+सु । आसितम्।
यहां क्तोऽधिकरणे च धौव्यगतिप्रत्यवसानार्थेभ्यः' (३।४।७६) से आस् धातु से अधिकरण कारक में क्त-प्रत्यय है और उसके प्रयोग में छात्र' शब्द में षष्ठी विभक्ति है। यहां 'अधिकरणवाचिना च' (२।२।१३) से षष्ठी समास का प्रतिषेध होता है।
न लोकाव्ययनिष्ठाखलर्थतनाम् (२।३।६९) से निष्ठा (क्त) प्रत्यय का ग्रहण होने से क्त-प्रत्यय के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति का प्रतिषेध प्राप्त है, अत: इस सूत्र से
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