Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उपसर्जन 'सह' के स्थान में 'स' आदेश होता है। ऐसे ही-सच्छात्रः। यहां पुत्र और पिता का तथा छात्र और उपाध्याय का आगमन-क्रिया में तुल्य योगदान है।
विशेष-जहां 'सह' शब्द का तुल्ययोग (साथ) अर्थ नहीं होता है वहां बहुव्रीहि समास भी नहीं होता है। जैसे-सहैव दशभिः पुत्रैर्भारं वहति गर्दभी। दश पुत्रों के विद्यमान होते हुये भी गधी बोझा ढोती है। यहां 'सह' शब्द विद्यमान अर्थ में है, साथ अर्थ में नहीं। द्वन्द्वसमास:
चार्थे द्वन्द्वः।२६। प०वि०-च-अर्थे ७।१ द्वन्द्व: १।१ । स०-चस्य अर्थ इति चार्थः, तस्मिन्-चार्थे (षष्ठीतत्पुरुष:)। अनु०-विभाषा, ‘अनेकम्' इति च मण्डूकप्लुप्त्याऽनुवर्तते । अन्वय:-चार्थेऽनेकं सुप् परस्परं विभाषा समासो द्वन्द्वः ।
अर्थ-चार्थे वर्तमानं अनेक सुबन्तं परस्परं समस्यते द्वन्द्वश्च समासो भवति।
उदा०-प्लक्षश्च न्यग्रोधश्च तौ-प्लक्षन्यग्रोधौ। धवश्च खदिरश्च पलाशश्च ते-धवखदिरपलाशा: । पाणी च पादौ च एतेषां समाहार: पाणिपादम् । शिरश्च ग्रीवा च एतयो: समाहार: शिरोग्रीवम् ।
आर्यभाषा-अर्थ-(चार्थे) च' शब्द के अर्थ में विद्यमान (अनेकम्) अनेक सुबन्तों का परस्पर (विभाषा) विकल्प से समास होता है। और उसकी (द्वन्द्वः) द्वन्द्व संज्ञा होती है।
उदा०-प्लक्षश्च न्यग्रोधश्च तौ प्लक्षन्यग्रोधौ। पिलखन और बड़ का योग। धवश्च खदिरश्च पलाशश्च ते-धवखदिरपलाशा:। धौ, खैर और ढाक का योग। पाणी च पादौ च एतेषां समाहार: पाणिपादम् । हाथों और पावों का समूह। शिरश्च ग्रीवा च एतयो: समाहार: शिरोग्रीवम् । शिर और गर्दन का समूह।
सिद्धि-(१) प्लक्षन्यग्रोधौ । प्लक्ष+सु+न्यग्रोध+सु। प्लक्षन्यग्रोध+और प्लक्षन्यग्रोधौ। (२) पाणिपादम् । पाणि+औ+पाद+औ। पाणिपाद+सु। पाणिपाद+अम्। पाणिपादम्। यहां द्वन्द्वश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् (२।४।२) से एकवद्भाव होता है।
विशेष-च शब्द के अर्थ- च शब्द के समुच्चय, अन्वाचय, इतरेतरयोग और समाहार ये चार अर्थ होते हैं। समुच्चय और अन्वाचय अर्थ में द्वन्द्व समास नहीं होता है।
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