Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य तृतीयः पादः
४११
( ३ ) इतर - इतर शब्द निर्दिश्यमान का प्रतियोगी है । इतरो ब्राह्मणाद् राजन्य: । ब्राह्मण से क्षत्रिय भिन्न है।
(४) ऋते - यह अव्यय निषेध अर्थ में है । ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः । ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती है।
(५) दिक्शब्द - पूर्वी ग्रामात् पर्वतः । गांव से पूर्व दिशा में पहाड़ है । उत्तरो ग्रामात् पर्वतः । गांव से उत्तर दिशा में पहाड़ है।
(६) अञ्चूत्तरपद-प्राग् ग्रामाद् नदी प्रवहति । गांव से पूर्व दिशा में नदी बहती है। प्रत्यग् ग्रामाद् नदी प्रवहति । गांव से पश्चिम दिशा में नदी बहती है। अञ्चूत्तरपदवाले
शब्द भी दिक्शब्द हैं, इनका पृथक् कथन क्यों किया है ? 'षष्ठ्यतसर्थप्रत्ययेन' (२ 1३1३०) से यहां षष्ठी विभक्ति का विधान किया जायेगा, अतः यहां उससे पहले ही पञ्चमी का विधान कर दिया है।
(७) आच्-दक्षिणा ग्रामाद् गुरुकुलम् । गांव से दक्षिण दिशा में गुरुकुल है। उत्तरा ग्रामाद् आश्रम: । गांव से उत्तर दिशा में आश्रम है।
(८) आहि-दक्षिणाहि ग्रामाद् गुरुकुलम् । अर्थ पूर्ववत् है । उत्तराहि ग्रामाद् आश्रमः । अर्थ पूर्ववत् है ।
सिद्धि - (१) अञ्चूत्तरपद - प्राग् ग्रामात् नदी प्रवहति । प्र+अञ्चू + क्विन् । प्र+अञ्च्+0। प्र+अच् । प्राक् +अस्ताति । प्राक् +1 प्राक् ।
यहां प्र उपपद 'अञ्चु गतिपूजनयो:' (भ्वा०प०) धातु से 'ऋत्विग्दधृक्०' (३/२/५९) सेक्विन्' प्रत्यय है। उससे 'दिक्शब्देभ्यः' (५/३/२७) से 'अस्ताति' प्रत्यय करने पर उसका 'अञ्चेर्लुक्' (५1३ 1३०) से लुक् हो जाता है । प्राग् इस अञ्चूत्तरपद शब्द से युक्त 'ग्राम' शब्द में पञ्चमी विभक्ति है।
(२) आच्- दक्षिणा ग्रामाद् गुरुकुलम् । दक्षिण+आच् । दक्षिण+सु । दक्षिणा । यहां 'दक्षिणादाच्' (५ / ३ / ३६ ) से दक्षिण शब्द से 'आच्' प्रत्यय होता है। (३) आहि-दक्षिणाहि ग्रामाद् गुरुकुलम् । दक्षिण+आहि । दक्षिणाहि+सु। दक्षिणाहि । यहां 'आहि च दूरें (4.1३1३७ ) से दक्षिण शब्द से 'आहि' प्रत्यय होता है। आहिप्रत्ययान्त से युक्त शब्द 'ग्राम' में पञ्चमी विभक्ति है।
षष्ठी
(३) षष्ठ्यतसर्थप्रत्ययेन । ३० ।
प०वि० - षष्ठी १ । १ अतसर्थ - प्रत्ययेन ३ । १ ।
स० - अतसोऽर्थ इति अतसर्थः तस्मिन् - अतसर्थे । अतसर्थे प्रत्यय
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