Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-मासे देयम् ऋणमिति मासदेयम् । संवत्सरे देयम् ऋणमिति संवत्सरदेयम्।
आर्यभाषा-अर्थ-(सप्तमी) सप्तमी-अन्त सुबन्त का (कृत्यैः) कृत्य-प्रत्ययान्त समर्थ सुबन्तों के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है। (ऋणे) ऋण अर्थ में और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है।
उदा०-मासे देयम् ऋणमिति मासदेयम् । एक मास में चुकाने योग्य ऋण। संवत्सरे देयमृणमिति संवत्सरदेयम् । एक साल मैं चुकाने योग्य ऋण।
सिद्धि-मासदेयम् । दा+यत् । देय+सु । देयम्। मास्+डि+देय+सु। मासदेय+सु। मासदेयम्।
__ यहां डुदान दाने (जु०उ०) धातु से अचो यत्' (३।१।९७) से कृत्यसंज्ञक यत् प्रत्यय है। ईयति (६।४।६५) से ईकार आदेश और 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से गुण होता है। ऐसे ही-संवत्सरदेयम्।
विशेष-कृत्या: (३।१।९५) इस सूत्र से लेकर 'ऋहलोर्ण्यत्' (३।१।१२४) तक तव्यत् आदि कृत्य प्रत्ययों का विधान किया गया है, किन्तु यहां केवल उनमें से यत्' प्रत्यय का ग्रहण करना ही अभीष्ट है। सप्तमी
(४) संज्ञायाम् ।४४। प०वि०-संज्ञायाम् ७।१। अनु०-'सप्तमी' इत्यनुवर्तते।
अन्वय:-सप्तम्यन्तं सुबन्तं समर्थेन सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते, संज्ञायां गम्यमानायाम्, तत्पुरुषश्च समासो भवति।
उदा०-अरण्येतिलका: । अरण्येमाषा: । वनेकिंशुका: । वनेबिल्वका: । कूपेपिशाचका:।
आर्यभाषा-अर्थ-(सप्तमी) सप्तमी-अन्त सुबन्त का (सुपा) समर्थ सुबन्त के साथ नित्य समास होता है (संज्ञायाम्) संज्ञा अर्थ में और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है।
उदा०-अरण्येतिलका: । जंगली तिल । अरण्येमाषा: । जंगली उड़द । वनेकिंशुकाः। जंगली टेसू । वनेबिल्वका:। जंगली बेलगिरी। कूपेपिशाचकाः। कुएं में रहनेवाले राक्षस।
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