Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् - विशेष-प्राचीनकाल में ब्रह्मचारी भिक्षावृत्ति करते थे और उस भिक्षा को लाकर अपने आचार्य को सौंप देते थे। आचार्य उस भिक्षा में से अपने लिये रखकर शेष भिक्षा उन ब्रह्मचारियों में बांट देता था। उस अवस्था में द्वितीयभिक्षा' आदि पदों का व्यवहार किया जाता था। प्राप्तापन्नयोर्विकल्प:
प्राप्तापन्ने च द्वितीयया।४। प०वि०-प्राप्ता-आपन्ने १।२ अ ११, च अव्ययपदम्, द्वितीयया ३।१।
स०-प्राप्ता च आपन्ना च ते प्राप्तापन्ने (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-'अन्यतरस्याम्' इत्यनुवर्तते।
अर्थ:-प्राप्तापन्ने सुबन्ते अन्यतरस्यां द्वितीयान्तेन समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्येते, प्राप्तापन्नयोश्चाऽकारादेशो भवति । समासश्च तत्पुरुषो भवति। द्वितीयातत्पुरुषापवादः । अन्यतरस्यां ग्रहणात् सोऽपि भवति।
उदा०-प्राप्ता-प्राप्ता जीविकामिति प्राप्तजीविका, जीविकाप्राप्ता वा। आपन्ना-आपन्ना जीविकामिति आपन्नजीविका, जीविकापन्ना वा।
आर्यभाषा-अर्थ-(प्राप्तापन्ने) प्राप्ता और आपन्ना सुबन्त का (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (द्वितीयया) द्वितीयान्त समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है (अच) और प्राप्ता तथा आपन्ना के आ को अकारादेश होता है और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। यह द्वितीया तत्पुरुष समास का अपवाद है। 'अन्यतरस्याम्' वचन से द्वितीया तत्पुरुष समास भी होता है। विभाषा का अधिकार होने से पक्ष में विग्रह वाक्य भी होता है।
उदा०-प्राप्ता जीविकामिति प्राप्तजीविका, जीविकाप्राप्ता वा। जीविका को प्राप्त हुई नारी। आपन्ना-आपन्ना जीविकामिति आपन्नजीविका, जीविकापन्ना वा। जीविका को प्राप्त हुई नारी।
सिद्धि-प्राप्तजीविका। प्राप्ता+सु+जीविका+अम्। प्राप्त+जीविका+सु । प्राप्तजीविका। जीविकाप्राप्ता। जीविका+अम्+प्राप्ता+सु। जीविकाप्राप्त+सु। जीविकाप्राप्ता।
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