Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः अनु०-उपपदम्, अमैवाव्ययेन, तत्पुरुष इति चानुवर्तते।
अन्वय:-तृतीयाप्रभृतीनि उपपदानि सुपोऽमैवाव्ययेन सुपा सहान्यतरस्यां समासस्तत्पुरुषः।
अर्थ:-तृतीयाप्रभृतीनि उपपदानि सुबन्तानि अमन्तेन एव अव्ययेन समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यन्ते, तत्पुरुषश्च समासो भवति ।
उदा०-मूलकेनोपदंशं भुङ्क्ते। मूलकोपदंशं भुङ्क्ते। उच्चैः कारमाचष्टे। उच्चै:कारमाचष्टे।
आर्यभाषा-अर्थ-(तृतीयाप्रभृतीनि) उपदंशस्तृतीयायाम् (३।४।४७) से लेकर जो उपपद हैं उन उपपद सुबन्तों का (अमा) अम् जिसके अन्त में है (एव) उसी (अव्ययेन) अव्यय समर्थ सुबन्त के साथ (अन्यतरस्याम्) विकल्प से समास होता है और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है।
उदा०-मूलकेन उपदंशं भुङ्क्ते। मुलकोपदंशं भुङ्क्ते। मूली को दांत से काटकर उसके साथ रोटी खाता है। उच्चैः कारमाचष्टे । उच्चैःकारमाचष्टे । हे ब्राह्मण ! तेरी कन्या गर्भिणी है, हे वृषल ! क्या तू इसे ऊंचा स्वर करके कहता है।
सिद्धि-(१) मूलकोपदंशम् । मूलक+टा+उपदंश्+णमुल्। मूलक+उपदंश्+अम्। मूलकोपदंशम्+सु। मूलकोपदंशम् ।
___यहां 'उपदंशस्तृतीयायाम्' (३।४।४७) से तृतीयान्त मूलक शब्द उपपद होने पर डुकृञ करणे (त०3०) धातु से णमुल् प्रत्यय है। 'अचो णिति (७।२।११५) से कृ धातु को वृद्धि होती है। तृतीयान्त 'मूलक' शब्द का अमन्त अव्यय कारम्' के साथ इस सूत्र से विकल्प से समास होता है। कृन्मेजन्त:' (१।१।३९) से मकारान्त कारम्' शब्द की अव्यय संज्ञा है।
(२) उच्चै:कारम् । उच्चैः+सु+कृ+णमुल्। उच्चैः+का+अम्। उच्चै:कारम्+सु। उच्चै:कारम्।
यहां 'अव्ययेऽयथाभिप्रेताख्याने०' (३।४।५९) से उच्चैः' अव्यय शब्द उपपद होने से कृ धातु से णमुल् प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। तृतीयादीनि (क्त्वा)
(४) क्त्वा चा२२। प०वि०-क्त्वा ३१ च अव्ययपदम्। अनु०-उपपदम्, तृतीयाप्रभृतीनि, अन्यतरस्याम् इति चानुवर्तते।
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