Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः
सिद्धि-भवत: शायिका। यहां 'शीङ् स्वप्ने' (अदा०आ०) धातु से 'पर्यायार्हणोत्पत्तिषु वुच्' (३ | ३ |१११) से पर्याय (बारी) अर्थ में ण्वुच् प्रत्यय है। इसके वु' के स्थान में 'युवोरनाक' (७ 1१1१) से अक- आदेश होता है। 'शायिका' इस आकारान्त शब्द के प्रयोग में 'कर्तृकर्मणोः कृति' (२/३/६५ ) से कर्ता 'भवत:' में षष्ठी विभक्ति है । प्रकृत सूत्र से इस में षष्ठीसमास का प्रतिषेध किया गया है 1
विशेष- काशिकाकार पं० जयादित्य ने तृजकाभ्या कर्तरि' और 'कर्तरि च' इन दोनों सूत्रों का महाभाष्यकार से विरुद्ध व्याख्यान किया है। अतः वह माननीय नहीं है। नित्यं षष्ठीतत्पुरुषः
(१) नित्यं क्रीडाजीविकयोः । १७ ।
प०वि० नित्यम् १ ।१ क्रीडा-जीविकयोः ७।२।
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स०-क्रीडा च जीविका च ते क्रीडाजीविके, तयो:-क्रीडाजीविकयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०- षष्ठी अकेन तत्पुरुष इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-क्रीडाजीविकयोः षष्ठी सुप् सुपा सह नित्यं समासस्तत्पुरुषः । अर्थ:-क्रीडायां जीविकायां चार्थे षष्ठ्यन्तं सुबन्तं नित्यं समस्यते, समासश्च तत्पुरुषो भवति ।
उदा०- (क्रीडायाम् ) उद्दालकपुष्पभञ्जिका । वारणपुष्पप्रचायिका । (जीविकायाम्) दन्तलेखकः । नखलेखकः ।
-अन्त
आर्यभाषा - अर्थ - (क्रीडाजीविकयोः) क्रीडा और जीविका अर्थ में (षष्ठी) षष्ठी-अ सुबन्त का (सुपा) समर्थ सुबन्त के साथ (नित्यम् ) सदा समास होता है और उसकी ( तत्पुरुषः ) तत्पुरुष संज्ञा होती है।
उदा०- (क्रीडा) उद्दालकपुष्पभञ्जिका । उद्दालक के फूल तोड़ने का खेल | वारणपुष्पप्रचायिका । वारण वृक्ष के फूल इकट्ठा करने का खेल। (जीविका) दन्तलेखकः । दांतों का लेखन करनेवाला । नखलेखकः । नाखूनों का लेखन (कटाई) करनेवाला ।
सिद्धि-(१) उद्दालकपुष्पभञ्जिका । भञ्ज्+ण्वुल् । भञ्ज्+अक। 'भञ्जक+टाप् । भञ्जिक+आ। भञ्जिका+सु । भञ्जिका । उद्दालकपुष्प+आम्+भञ्जिका+सुं। उद्दालकपुष्पभञ्जिका+सु। उद्दालकपुष्पभञ्जिका ।
यहां 'भजो आमर्दने' (रु०प०) धातु से 'संज्ञायाम्' से ण्वुल् प्रत्यय है। युवोराको ( ७ 1१1१ ) से वु के स्थान में अक- आदेश होता है। स्त्रीत्व विवक्षा में 'अजाद्यष्टार'
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