Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-पदान्त-द्विर्वचन-वरे-यलोप-स्वर-सवर्ण-अनुस्वार-दीर्घजश्-चर्-विधिषु कर्तव्येषु परनिमित्तकोऽच आदेश: पूर्वविधौ कर्त्तव्ये स्थानिवन्न भवति।
उदा०-(१) पदान्त:। कौ स्तः। यौ स्त: । तानि सन्ति। यानि सन्ति । (२) द्विवचनम् । दद्ध्यत्र । मद्ध्वत्र । (३) वरेः । अप्सु यायावर: प्रवपेत पिण्डान्। (४) यलोप: । कण्डूति: । (५) स्वरः । चिकीर्षक: । जिहीर्षक: । (६) सवर्णम् । शिण्ढि । पिण्ढि । (७) अनुस्वारः । शिंषन्ति । पिंशन्ति । (८) दीर्घः । प्रतिदीना। प्रतिदीने। (९) जश् । सग्धिश्च मे, सपीतिश्च मे बब्धां ते हरी धाना: । (१०) चर्। जक्षतुः । जक्षुः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(पदान्त०) पदान्त, द्विवचन, वरे, यलोप, स्वर, सवर्ण, अनुस्वार, दीर्घ, जश् और चर् सम्बन्धी विधि के करने में (अच:) अच् के स्थान में किया गया (परस्मिन्) पर के कारण से (आदेश:) कोई आदेश (पूर्वविधौ) पूर्व की कोई विधि करने में (स्थानिवत्) स्थानी के समान (न) नहीं होता है।
उदा०-(१) पदान्त। कौ स्त: । दो कौन हैं। यौ स्त: । जो दो हैं। तानि सन्ति। वे हैं। यानि सन्ति। जो हैं। (२) द्विवचन । दद्ध्यत्र । यहां दही है। मद्ध्वत्र। यहां मधु है। (३) वरे। अप्सु यायावर: प्रवपेत पिण्डान्। यायावरः। घूमनेवाला। (४) यलोप। कण्डूतिः । खाज। (५) स्वर। चिकीर्षक: । करने का इच्छुक। जिहीर्षक: । हरने का इच्छुक। (६) सवर्ण। शिण्डि। तू पृथक् कर। पिण्डि। तू पीस। (७) अनुस्वार। शिंषन्ति । पृथक् करते हैं। पिंशन्ति। पीसते हैं। (८) दीर्घ । प्रतिदीना। प्रतिदिन से। प्रतिदिने। प्रतिदिन के लिये। (९) जश् । सग्धिश्च मे सपीतिश्च मे बब्धां ते हरी धानाः । सग्धि: समान भोजन। सपीति:-समान पान । (१०) चर्। जक्षतुः । उन दोनों ने खाया। जक्षुः । उन सबने खाया।
सिद्धि-(१) पदान्तविधि । (कौ स्त:) अस्+लट् । अस्+शप्+तस् । अस्+o+तस् । अस्+तस् । स्+तस् । स्त: । यहां इनसोरल्लोप:' (६।४।१११) से क्डित् सार्वधातुक प्रत्यय के परे होने पर अस् धातु के अकार का लोप होता है। यह अकार लोप परिनिमित्तक अच् आदेश है, यह पूर्व की विधि (एचोऽयवायाव:' (६।११७८) से को को आव् आदेश करने में स्थानिवत् नहीं होता है। यदि वह स्थानिवत् हो जाये तो यहां प्राप्त आव्' आदेश हो जाये। इसी प्रकार तानि सन्ति' में 'इको यणचि' (६।१।७०) से तानि' को यण-आदेश नहीं होता है।
(२) द्विर्वचनविधि। (दद्ध्यत्र) दधि+अत्र। दध् च+अत्र । दध् ध् य+ अत्र। दद्ध्यत्र। यहां इको यणचि (६।१७७) से यण' आदेश, 'अनचि च' (८।४।४७)
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