Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(संयोगे) संयोग परे होने पर (ह्रस्वम्) ह्रस्व अक्षर की (गुरु) गुरुसंज्ञा होती है।
उदा०-शिक्षा। भिक्षा।
सिद्धि-शिक्षा। शिक्ष्+अ। शिक्ष+टाप्। शिक्ष+आ। शिक्षा+सु। शिक्षा। यहां शिक्ष विद्योपादने' (भ्वा०आ०) धातु में संयोग (क+ए) परे होने पर 'इ' की गुरु संज्ञा होने से गुरोश्च हल:' (३।३।१०३) से स्त्रीलिङ्ग में 'अ' प्रत्यय होता है। तत्पश्चात् 'अजाद्यष्टाप्' (४।१।४) से स्त्रीलिङ्ग में 'टाप्' प्रत्यय होता है।
इसी प्रकार भिक्ष भिक्षायामलाभे लाभे च' (भ्वा०आ०) धातु से भिक्षा' शब्द सिद्ध होता है। दीर्घमपि
(२) दीर्घ च।१२। प०वि०-दीर्घम् १।१ च अव्ययपदम् । अनु०-'गुरु' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-दीर्घ च गुरु। अर्थ:-दीर्घ चाक्षरं गुरु-संज्ञकं भवति। उदा०-ईहांचक्रे। ऊहांचक्रे। आर्यभाषा-अर्थ-(दीर्घम्) दीर्घ अक्षर की (च) भी (गुरु) गुरु संज्ञा होती है। उदा०-ईहांचक्रे। उसने चेष्टा की। ऊहांचक्रे। उसने वितर्क किया।
सिद्धि-(१) ईहांचक्रे । ईह+आम्। ईहाम्+लिट् । इहाम्+लि। ईहाम्+कृ+लिट् । ईहाम्+कृ कृ+त। इहाम्+क+कृ+एश् । ईहाम्+च+कृ+ए। ईहांचक्रे ।
यहां 'ईह चेष्टायाम्' (भ्वा०आ०) धातु के गुरुमान् होने से प्रथम 'इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छ:' (३।१।३६) 'आम्' प्रत्यय होता है। तत्पश्चात् आमः' (२।४।८१) से लिट्' प्रत्यय का लुक् होकर कृञ् चानुप्रवुज्यते लिटि' (३।१।४०) से कृञ्' का अनुप्रयोग होता है। लिट' प्रत्यय के परे होने पर लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१८) से कृ' धातु को द्विवचन, लिटस्तझयोरेशिरेच्' (३।४।८१) से त' के स्थान में 'एश्' आदेश, उरत्' (७।४।६६) से अभ्यास के 'ऋ' को अकार आदेश तथा 'अभ्यासे चर्च (८।४।५ ४) से अभ्यास के 'क्' को चर्-आदेश (च) होता है।
ऐसे ही ऊह वितर्के' (भ्वा०आ०) धातु से ऊहांचक्रे' शब्द सिद्ध होता है।
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