Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
उदा०- - (द्वित्व - विवक्षा में) ब्राह्मणौ पठतः । दो ब्राह्मण पढ़ते हैं। (एकत्व - विवक्षा में) ब्राह्मणः पठति । एक ब्राह्मण पढ़ता है।
सिद्धि - (१) ब्राह्मणौ । ब्राह्मण+औ । ब्राह्मणौ। यहां दो ब्राह्मणों की विवक्षा में ब्राह्मण शब्द से द्विवचन संज्ञक 'औ' प्रत्यय होता है।
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(२) पठतः । पठ्+लट् । पठ्+शप्+तस्। पठ्+अ+तस् । पठतः। यहां पठ व्यक्तायां वाचि' ( वा०प०) से द्वित्व की विवक्षा में द्विवचन संज्ञक 'तस्' प्रत्यय होता है।
(३) ब्राह्मणः । ब्राह्मण+सु । ब्राह्मण+रु । ब्राह्मण+ र् । ब्राह्मण: । यहां एक ब्राह्मण की विवक्षा में ब्राह्मण शब्द से एकवचन संज्ञक 'सु' प्रत्यय होता है।
(४) पठति । पठ्+लट् । पठ्+शप्+तिप् । पठ्+अ+ति । पठति । यहां 'पठ व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) धातु से एकत्व विवक्षा में एकवचन संज्ञक 'तिप्' प्रत्यय होता है।
कारकप्रकरणम्
अधिकार:
प०वि० कारके ७ । १ ।
अर्थ:- 'कारके' इत्यधिकारोऽयम्, 'तत्प्रयोजको हेतुश्च' (१।४।५५ ) इति यावत् । कारकशब्दोऽत्र निमित्तपर्यायः । कारकं हेतुरित्यनर्थान्तरम् । कस्य हेतुः ? क्रियाया: ।
कारके | २३ |
आर्यभाषा - अर्थ - (कारके) कारके' का 'तत्प्रयोजको हेतुश्च' (१।४।४५) तक अधिकार है। यहां कारक शब्द निमित्त का पर्यायवाची है। कारक और निमित्त शब्द में कोई अर्थभेद नहीं है। किसका हेतु ? क्रिया का जो हेतु होता है उसे कारक (कारण) कहते हैं ।
'कारक' शब्द एक अव्युत्पन्न प्रातिपदिक है इसका अर्थ 'कारण' है। इस प्रकरण कारक शब्द से ही व्यवहार किया जाता है
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अपादान-संज्ञा
ध्रुवम्—
(१) ध्रुवमपायेऽपादानम् । २४ ।
प०वि०-१
- ध्रुवम् १।१ अपाये ७ ।१ अपादानम् १।१। अर्थः-अपाये=विभागे सति यद् ध्रुवम् = अवधिभूतं तत् कारकम्
अपादान-संज्ञकं भवति ।
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