Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ईश्वर: स्वामी, स च स्वमपेक्षते। इयं स्व-स्वामिसम्बन्धे कर्मप्रवंचनीयसंज्ञा विधीयते।
आर्यभाषा-अर्थ-(ईश्वरे) स्व-स्वामी सम्बन्ध अर्थ में (अधि:) अधि निपात की (कर्मवचनीयः) कर्मवचनीय संज्ञा होती है।
उदा०-(स्वामी) अधि ब्रह्मदत्ते पाञ्चाला: । ब्रह्मदत्त पाञ्चालों का स्वामी है। (स्व) अधि पञ्चालेषुब्रह्मदत्तः । पञ्चाल ब्रह्मदत्त के अधीन हैं।
सिद्धि-(१) अधि ब्रह्मदत्ते पञ्चाला:। यहां 'अधि' निपात की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होने से यस्मादधिकं यस्य चेश्वरवचनं तत्र सप्तमी (३।३।९) से अधि के योग में सप्तमी विभक्ति होती है। स्व-स्वामी सम्बन्ध में षष्ठी शेषे (२।३।५०) से षष्ठी विभक्ति प्राप्त थी। कर्मप्रवचनीय संज्ञा होने से उसका प्रतिशेष हो जाता है।
विशेष-स्व-स्वामी सम्बन्ध में कभी स्वामी' का और कभी स्व' का प्रधानता से कथन किया जाता है। जब स्वामी का प्रधानता से कथन किया जाता है तब स्वामी (ब्रह्मदत्त) की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है। जब स्व का प्रधानता से कथन किया जाता है तब स्व (पंचाल) की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है। जिसकी कर्मप्रवचनीय संज्ञा हो उसी में यस्मादधिकं यस्य चेश्वरवचनं तत्र सप्तमी (३।३।९) से सप्तमी विभक्ति हो जाती है। कृत्रि विकल्प:
(१६) विभाषा कृत्रि।६८। प०वि०-विभाषा ११ कृत्रि ७।१ । अनु०-'अधिरीश्वरे' इत्यनुवर्तते । अन्वय:-ईश्वरेऽधिनिपात: कृत्रि विभाषा कर्मप्रवचनीयः ।
अर्थ:-ईश्वरेऽर्थेऽधिनिपात: कृत्रि परतो विकल्पेन कर्मप्रवचनीयसंज्ञको भवति।
उदा०-यदत्र माम् अधि करिष्यति। यदत्र माम् अधिकरिष्यति। ईश्वरो भवति, एवमत्र मां विनियोक्ष्यते, इत्यर्थः ।
____ आर्यभाषा-अर्थ-(ईश्वरे) स्वामी अर्थ में (अधि:) अधि निपात की (कृषि) कृञ्' धातु से परे होने पर (विभाषा) विकल्प से कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है।
उदा०-यदत्र माम् अधि करिष्यति । यदत्र माम् अधिकरिष्यति। वह स्वामी है, इसलिये वह मुझे इस पद पर नियुक्त करेगा।
सिद्धि-(१) यदत्र मामधिकरिष्यति। यहां 'अधि' निपात की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होने से गति संज्ञा नहीं रहती है। अत: यहां तिडि चोदात्तवति' (८1१७१) से 'अधि'
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