Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-कर्ता (कर्मणा) उपाध्यायाय गां ददाति । माणवकाय भिक्षां ददाति।
आर्यभाषा-अर्थ-कर्ता (कर्मणा) ददाति-क्रिया के कर्म के द्वारा (यम्) जिसको (अभिप्रैति) प्राप्त करना चाहता है (स:) उस (कारकम्) कारक की (सम्प्रदानम्) सम्प्रदान संज्ञा होती है।
उदा०-उपाध्यायाय गां ददाति । वह उपाध्याय को गाय देता है। माणवकाय भिक्षां ददाति। वह बालक को भिक्षा देता है।
सिद्धि-देवदत्त उपाध्यायाय गां ददाति । देवदत्त उपाध्याय को गाय देता है। यहां देवदत्त ददाति' क्रिया के कर्म 'गो' के द्वारा उपाध्याय को प्राप्त करना चाहता है, उससे सम्बन्धित होता है, अत: उपाध्याय की सम्प्रदान संज्ञा है। इसलिये उससे 'चतुर्थी सम्प्रदाने (२।३।१३) से चतुर्थी विभक्ति हो जाती है। प्रीयमाण:
(२) रुच्यार्थानां प्रीयमाणः ।३३। प०वि०-रुचि-अर्थानाम् ६ ।३ प्रीयमाणः । ११ । स०-रुचिरर्थो येषां ते रुच्याः , तेषाम्-रुच्यर्थानाम् (बहुव्रीहि:)। अनु०-'सम्प्रदानम्' इत्यनुवर्तते । अन्वय:-रुच्यार्थानां प्रीयमाण: कारकं सम्प्रदानम् ।
अर्थ:-रुचि-अर्थानां धातूनां प्रयोगे य: प्रीयमाण:=तर्पमाणोऽर्थः, तत् कारकं सम्प्रदान-संज्ञकं भवति।
उदा०-देवदत्ताय रोचते मोदकः । यज्ञदत्ताय स्वदतेऽपूपः । अन्यकर्तृकोऽभिलाष: रुचि: । देवदत्तस्थस्याभिलाषस्यात्र मोदक: कर्ता । ___आर्यभाषा-अर्थ- (रुचि-अर्थानाम्) रुचि अर्थवाली धातुओं के प्रयोग में (प्रीयमाण:) जो तृप्त होनेवाला है (कारकम्) उस कारक की (सम्प्रदानम्) सम्प्रदान संज्ञा होती है।
उदा०-देवदत्ताय रोचते मोदकः । देवदत्त को लड्डू अच्छा लगता है। यज्ञदत्ताय स्वदतेऽपूपः । यज्ञदत्त को पूड़ा स्वाद लगता है।
सिद्धि-(१) देवदत्ताय रोचते मोदकः । यहां रोचते' धातु के प्रयोग में तृप्त होनेवाला देवदत्त है, अत: उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है। इसलिये उसमें चतुर्थी सम्प्रदाने (२।३।१३) से चतुर्थी विभक्ति हो जाती है। इसी प्रकार-यज्ञदत्ताय स्वदतेऽपूपः ।
विशेष-धातुपाठ में 'रुच दीप्तौ' (भ्वा०आ०) रुच धातु दीप्ति अर्थ में पढ़ी गई है। अनेकार्था हि धातवो भवन्ति' धातु अनेकार्थक होती हैं, अत: यहां रुच धातु अभिलाष
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