Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः सिद्धि-नदीमन्ववसिता सेना। यहां 'अनु' निपात का अर्थ 'सह' (साथ) है। इसलिये सहयुक्तेऽप्रधाने (२।३।१९) से तृतीया विभक्ति प्राप्त थी किन्तु अनु निपात की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होने से नदी' शब्द में कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया' (२।३।८) से द्वितीया विभक्ति हो जाती है।
(४) हीने।८६। प०वि०-हीने ७१। अनु०-‘अनुः' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-हीनेऽनुर्निपात: कर्मवचनीय: । अर्थ:-हीने (न्यूने) अर्थेऽनुर्निपात: कर्मवचनीयसंज्ञको भवति । उदा०-अनु शाकटायनं वैयाकरणा: । अन्वर्जुनं योद्धारः ।
आर्यभाषा-अर्थ- (हीने) कर्म अर्थ में (अनुः) अनु निपात की (कर्मप्रवचनीय:) कर्मवचनीय संज्ञा होती है।
उदा०-अनु शाकटायनं वैयाकरणा:। सब वैयाकरण लोग शाकटायन से कम हैं। अनु अर्जुनं योद्धारः। सब योद्धा लोग अर्जुन से कम हैं।
सिद्धि-अनु शाकटायनं वैयाकरणा: । शाकटायन की अपेक्षा अन्य वैयाकरण हीन हैं। यह अपेक्षाजनित सम्बन्ध में षष्ठी शेषे (२।३।५०) से षष्ठी विभक्ति प्राप्त होती है, किन्तु अनु निपात की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होने से पूर्ववत् द्वितीया विभक्ति हो जाती है। इसी प्रकार-अनु अर्जुनं योद्धारः । उपः
(५) उपोऽधिके च।८७। प०वि०-उप: १।१ अधिके ७।१ च अव्ययपदम् । अनु०-'हीने' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अधिके हीने च उपो निपात: कर्मवचनीयः। अर्थ:-अधिके हीने चार्थे उपो निपात: कर्मप्रवचनीयसंज्ञको भवति।
उदा०- (अधिके) उप खार्यां द्रोण: । उप निष्के कार्षापणम्। (हीने) उप शाकटायनं वैयाकरणा: । उप दयानन्दं वेदभाष्यकारा: ।
आर्यभाषा-अर्थ-(अधिके) अधिक अर्थ में (हीने च) और हीन अर्थ में (अनु:) अनु निपात की (कर्मवचनीयः) कर्मवचनीय संज्ञा होती है।
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