Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् इसी प्रकार मृद क्षोदे (क्रया०प०) मुध रोधे (क्रया०प०) कुष निष्कर्षे (क्रया०प०) क्लिशू विबाधने (क्रया०प०) धातु से 'मृदित्वा' आदि शब्दों की सिद्धि करें।
(२) उदित्वा । वद्+क्त्वा। वद्+इट्+त्वा। वद्+इ+त्वा। उ अ +इ+त्वा। उद्+इ+त्वा। उदित्वा+सु। उदित्वा।
__ यहां वद व्यक्तायां वाचिं' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् क्त्वा' प्रत्यय और 'इट्' का आगम होने पर, क्त्वा' प्रत्यय के कित' होने से 'वचिस्वपियजादीनां किति (६।१।१५) से विद्' धातु को सम्प्रसारण होता है। तत्पश्चात् सम्प्रसारणाच्च' (६।१ ।१०८) से 'अ' को पूर्वरूप 'उ' हो जाता है।
यहां पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से अङ्ग को लघूपध गुण प्राप्त होता है। 'क्त्वा' प्रत्यय के कित् होने से क्डिति च' (१११५) से गुण का निषेध हो जाता है।
(३) उषित्वा । वस्+क्त्वा । वस्+इट्+त्वा । वस्+इट्+त्वा । वस्+इ+त्वा । उ अ स्+इ+त्वा। उस्+इ+त्वा। उष्+इ+त्वा। उषित्वा+सु। उषित्वा ।
यहां 'वस निवासे' (भ्वा०प०). धातु से पूर्ववत् क्त्वा' प्रत्यय, इट् आगम और सम्प्रसारण कार्य होता है।
यहां पूर्ववत् लघूपध गुण प्राप्त होता है। क्त्वा' प्रत्यय के कित्' होने से विडति च' (१११।५) से गुण का निषेध हो जाता है। यहां 'शासिवसिघसीनां च (८।३।६०) से 'वस्' धातु के सकार को मूर्धन्य षकार होता है।
विशेष-प्रश्न-क्त्वा प्रत्यय स्वयं कित् है, फिर उसे यहां कित् क्यों किया गया है ?
उत्तर-आगे 'न क्त्वा सेट्' (अ० १।२।१८) से सेट् (इट् सहित) क्त्वा' प्रत्यय के कित् होने का निषेध किया गया है। अत: मृड' आदि धातुओं से सेट्' क्त्वा प्रत्यय को फिर कित् विधान किया गया है। क्त्वासनौ
(४) रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छ: संश्च ।८।
प०वि०-रुद-विद-मुष-ग्रहि-स्वपि-प्रच्छ: ५।१ सन् १।१। च । अव्ययम्।
स०-रुदश्च विदश्च मुषश्च ग्रहिश्च स्वपिश्च प्रच्छ् च एतेषां समाहार:-रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छ्, तस्मात्-रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छ: (समाहारद्वन्द्व:)।
अनु०-'क्त्वा कित्' इत्यनुवर्तते । अन्वय:-रुद० प्रच्छ: क्त्वा सँश्च कित्। ..
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