Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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प्रथमाध्यायस्य तृतीयः पादः
૧૪૧ अन्वय:-प्रत्याभ्यां सन: श्रुव: कर्तरि आत्मनेपदं न।
अर्थ:-प्रत्याभ्यां परस्मात् सन्नन्तात् श्रु-धातो: कर्तरि आत्मनेपदं न भवति।
उदा०-(प्रते:) प्रतिशुश्रूषति। (आङ:) आशुश्रूषति। प्रतिज्ञातुमिच्छतीत्यर्थः।
आर्यभाषा-अर्थ-(प्रत्याभ्याम्) प्रति और आङ् उपसर्ग से परे (सन:) सन् प्रत्ययान्त (ज्ञ:) ज्ञा धातु से (कतीर) कर्तृवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद (न) नहीं होता है, अपितु परस्मैपद होता है।
___उदा०-(प्रति) प्रतिशुश्रूषति। प्रतिज्ञा करना चाहता है। (आङ्) आशुश्रूषति। प्रतिज्ञा करना चाहता है।
सिद्धि-प्रतिशुश्रूषति । प्रतिशुश्रूष+लट् । प्रतिशुश्रूष+शप्+तिम् । प्रतिशुश्रूष+अ+ति । प्रतिशुश्रूषति।
यहां प्रति' उपसर्गपूर्वक 'श्रु श्रवणे (स्वादि०) सन्नन्त धातु से पूर्ववत् 'लट्' प्रत्यय और उसके स्थान में परस्मैपद तिप्' आदेश है। ऐसे ही-आशुश्रूषति। शद्लू शातने (भ्वा०प०)
(४८) शदेः शितः।६०। प०वि-शदे: ५।१ शित: ६।१। सo-श इत् यस्य स:-शित्, तस्य-शित: (बहुव्रीहि:)। अनु०-शित: शदे: कर्तरि आत्मनेपदम् । अर्थ:-शित्-प्रत्ययसम्बन्धिन: शद-धातो: कर्तरि आत्मनेपदं भवति । उदा०-शीयते। तीक्ष्णं करोतीत्यर्थः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(शितः) शित् प्रत्यय से सम्बन्धित (शदे:) शद् धातु से (कतीरे) कर्तृवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद होता है।
उदा०-शीयते । तीक्ष्ण करता है। सिद्धि-शीयते । शलु+लट् । श द्+शप्+त । शद्+अ+त। शीय्+अ+ते । शीयते।
यहां 'शद्लू शातने' (भ्वा०प०) धातु से लट् प्रत्यय और उसके स्थान में आत्मनेपद त' आदेश होता है। यहां कर्तरि शप्' (३।१।६८) से शप्' विकरण प्रत्यय होने से शद् धातु शित् प्रत्यय से सम्बन्धित है। 'पाघ्राध्मा०' (अ०७।३।७८) से 'शद्' के स्थान में शीय' आदेश होता है।
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