Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
आर्यभाषा - अर्थ - (न- उपधात्) नकार उपधावाली (थ-फान्तात् ) थकारान्त और फकारान्त धातु से परे (सेट) इट् आगमवाला ( क्त्वा) क्त्वा प्रत्यय (वा) विकल्प से (कित्) कित् (न) नहीं होता है।
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उदा० - थकारान्त (ग्रन्थ) ग्रथित्वा । ग्रन्थित्वा । गांठ लगाकर । श्रथित्वा । श्रन्थित्वा । ढीला करके / छोड़कर । फकारान्त (गुम्फ) गुफित्वा, गुम्फित्वा । गूंथकर ।
सिद्धि - (१) प्रथित्वा । ग्रन्थ्+क्त्वा । ग्रन्थ्+इट्+त्वा । ग्रथ्+इ+त्वा । ग्रथित्वा+सु । ग्रथित्वा ।
यहां 'ग्रन्थ सन्दर्भे' (क्रया०प०) धातु से 'समानकर्तृकयोः पूर्वकालें (३/४/२१) से 'क्त्वा' प्रत्यय और पूर्ववत् 'इट्' का आगम होने पर एक पक्ष में 'क्त्वा' को कित मानने से 'अनुदात्तोपदेश०' (६ । ४ । ३७ ) से धातु के अनुनासिक न् ( ं) का लोप हो जाता है। विकल्प पक्ष में जहां क्त्वा प्रत्यय को कित् नहीं माना जाता है, वहां धातु के अनुनासिक न् ( ं) का लोप नहीं होता है - ग्रन्थित्वा ।
(२) इसी प्रकार 'श्रन्थ विमोचन प्रतिहर्षयोः' (क्रया०प०) धातु से श्रथित्वा और श्रन्थित्वा शब्द सिद्ध करें और 'गुम्फ ग्रन्थे' (तु०प०) धातु से गुफित्वा और गुम्फित्वा शब्द सिद्ध करें।
विशेष- 'न क्त्वा सेट्' (१ / २ /१८) सूत्र से सेट् क्त्वा' को कित् मानने का निषेध किया गया है। यहां कहा गया है कि सेट् 'क्त्वा' प्रत्यय विकल्प से कित् नहीं होता है। 'न वेति विभाषा' (१1१/४४) के वचन से यहां नकार से पूर्व प्राप्ति 'न क्त्वा सेट्' (१1१1१८) को हटा दिया जाता है और 'वा' से विकल्प कर दिया जाता है। आगामी विभाषा सूत्रों में भी ऐसा ही समझें ।
(२०) वञ्चिलुञ्च्यृतश्च । २४ ।
प०वि० - वञ्चि - लुञ्चि ऋतः ५ ।१ च अव्ययपदम् ।
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सo - वञ्चिश्च लुञ्चिश्च ऋत् च एतेषां समाहारः - वञ्चिलुञ्च्यृत्, तस्मात् - वञ्चिलुञ्च्यृतः ( समाहारद्वन्द्व : ) ।
अनु० - 'सेट् क्त्वा वा कित् न' इत्यनुवर्तते ।
अन्वयः - वञ्चिलुञ्च्यृतश्च सेट् क्त्वा वा किद् न ।
अर्थ:- वञ्चिलुञ्च्मृतिभ्यो धातुभ्यः परः सेट् क्त्वाप्रत्ययो विकल्पेन किदवद् न भवति ।
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उदा०- ( वञ्चि) वचित्वा । वञ्चित्वा । (लुञ्चि) लुचित्वा । लुञ्चित्वा । (ऋत्) ऋतित्वा अर्तित्वा ।
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