Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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प्रथमाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(धातु:) अस्तेर्भू:-भविता। भवितुम् । भवितव्यम्। (अङ्गम्) किम: क:-केन । काभ्याम् कैः । (कृत्) ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्-प्रकृत्य । प्रहृत्य । (तद्धित:) ठस्येक:-दाधिकम् । युवोरनाकौ-अद्यतनम्। (अव्ययम्) समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप्-प्रकृत्य । प्रहृत्य । (सुप्) डेय:-वृक्षाय । प्लक्षाय । (तिङ्) तस्थस्थमिपां तान्तन्ताम:-अकुरुताम्। अकुरुत। (पदम्) बहुवचनस्य वस्नसौ-ग्रामो वः स्वम्। जनपदो न: स्वम्।
आर्यभाषा-अर्थ-(अनल्-विधौ) अनेक अल् की विधि करने में (आदेश:) किया हुआ कोई आदेश (स्थानिवत्) स्थानी के समान होता है। धातु, अङ्ग, कृत्, तद्धित, अव्यय, सुप्, तिङ् और पद के आदेश इसके उदाहरण हैं।
उदा०-(१) धातु। धातु के स्थान में किया गया आदेश धातु के समान होता है। जैसे 'अस्तेर्भूः' (२।४।५२) भविता। भवितु। भवितव्यम्। यहां आर्धधातुक विषय में अस्' धातु से विहित तव्यत्' आदि प्रत्यय 'भू' धातु से भी होते हैं।
(२) अङ्ग । अङ्ग के स्थान में किया गया आदेश अङ्ग के समान होता है। जैसे-केन, काभ्याम्, कैः। यहां किम: क:' (७।२।१०३) से 'किम्' के स्थान में किये 'क' आदेश से भी इन, दीर्घत्व और ऐस् भाव होता है।
(३) कृत् । कृत् प्रत्यय के स्थान में किया गया आदेश कृत् के समान होता है। जैसे-प्रकृत्य, प्रहृत्य । यहां समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप् (७।१।३७) से क्त्वा' प्रत्यय के स्थान में ल्यप्' आदेश होता है। उसके परे होने पर भी हस्वस्य पिति कृति तुक् (६।११७१) से तुक् आगम हो जाता है।
(४) तद्धित । तद्धित प्रत्यय के स्थान में किया गया आदेश तद्धित के समान होता है। जैसे-दाधिकम्। अद्यतनम्। यहां ठस्येकः' (७।३।५०) से 'ठ' के स्थान में किया 'इक्’ आदेश तथा युवोरनाकौ (७।१।१) से यु' के स्थान में किया 'अन' आदेश तद्धित के समान होता है। इससे कृत्तद्धितसमासाश्च' (१।२।४६) से प्रातिपदिक संज्ञा हो जाती है।
(क) दाधिकम् । दधि+ठक् । दधि+इक् अ। दध्+इक् । दाध्+इक। दाधिक+सु। दाधिकम्।
(ख) अद्यतनम् । अद्य+ट्यु। अद्य+अन। अद्य+तुट्+अन। अद्य+त्+अन । अद्यतन+सु । अद्यतनम्। यहां सायंचिरं० (४।३।२३) से 'ट्यु' प्रत्यय और उसे तुट' आगम होता है।
(५) अव्यय । अव्यय के स्थान में किया गया आदेश अव्यय के समान होता है। जैसे-प्रकृत्य प्रहृत्य। यहां अव्यय क्त्वा' प्रत्यय के स्थान में समासेऽनझपूर्वे क्त्वो ल्यप् (७।१।३७) से किया गया ल्यप्’ आदेश भी अव्यय होता है। क्त्वातोसुन्कसुनः'
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