Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष-प्रश्न-यहां सूत्रार्थ में गित्, कित् और डित् प्रत्यय के परे रहने पर इक् के स्थान में प्राप्त गुण और वृद्धि का प्रतिषेध किया है, किन्तु क्डिति च सूत्र में तो कित् और डित् प्रत्यय के परे रहने पर गुण और वृद्धि का प्रतिषेध दिखाई दे रहा है ?
उत्तर-यहां वैयाकरण लोग गकार का चत्वंभूत उपदेश मानते हैं। ग+क+ङ्ग कङ् । यहां खरि च (८।४।५६) से ग् को चर् क् हो जाता है-क्क्ङ् । यहां यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा (८।४।४५) से द्वितीय क् को अनुनासिक ड् हो जाता है-कङ् । यहां हलो यमां यमि लोप: (८।४।६४) से मध्यस्थ ङ् का लोप हो जाता है। क्। क्डिति च। इस प्रकार यहां चत्वंभूत गकार का उपदेश किया गया है।
(६) दीधीवेवीटाम्।६। प०वि०-दीधी-वेवी-इटाम् ६ १३
स०-दीधीश्च वेवीश्च इट् च ते-दीधीवेवीट:, तेषाम्-दीधीवेवीटाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-इको गुणवृद्धी, न इति चानुवर्तते । अन्वय:-दीधीवेवीटाम् इको गुणवृद्धी न । अर्थ:-दीधी-वेवी-इटाम् इक: स्थाने गुणवृद्धी न भवत: ।
उदा०-(दीधी) आदीध्यनम्। आदीध्यक: । (ववी) आवेव्यनम् । आवेव्यकः। (इट) श्व: कणिता।
आर्यभाषा-अर्थ-(दीधीवेवीटाम्) दीधी, वेवी और इट् के (इक:) इक के स्थान में (गुणवृद्धी) गुण और वृद्धि (न) नहीं होती है।
उदा०-(दीधी) आदीध्यनम्। चमकना। आदीध्यकः । चमकनेवाला। विवी) आवेव्यनम् । गति आदि करना। आवेव्यकः । गति आदि करनेवाला। (इट्) श्व: कणिता। वह कल आवाज करेगा।
सिद्धि-(१) आदीध्यनम् । आड्+दीधी+ल्युट्। आ+दीधी+अन । आदीध्यन+सु। आदीध्यनम् । यहां आङ् उपसर्गपूर्वक दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः' (अदा०आ०) धातु से 'ल्युट् च' (३ ।३।११५) से भाव अर्थ में ल्युट् प्रत्यय करने पर सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से धातुस्थ ई को गुण प्राप्त होता है, किन्तु इस सूत्र से गुण का प्रतिषेध हो जाता है।
(२) आदीध्यकः । आङ्दीधी+ण्वुल् । आ+दीधी+अक। आदीध्यक+सु। आदीध्यकः । यहां आङ् उपसर्गपूर्वक दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः' (अदाआ०) धातु से 'वुल्तृचौं' (३।१।१३३) से ण्वुल् प्रत्यय करने पर 'अचो णिति (७।२।११५) से वृद्धि प्राप्त होती है, किन्तु इस सूत्र से वृद्धि का प्रतिषेध हो जाता है।
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