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पद्मपुराण
अन्त में साहस जुटा कर प्रजा के प्रमुख लोग राम से सीता विषयक लोकनिन्दा का वर्णन करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि 'आप चूँकि रावण के द्वारा अपहृत सीता को घर लाये हैं इसलिए प्रजा में स्वच्छन्दता फैलने लगी है।' सुनकर राम का हृदय अत्यन्त खिन्न हो उठता है।
१६६-२०१ सन्तानबेवाँ पर्व रामचन्द्र जी लक्ष्मण को बुलाकर सीता के अपवाद का समाचार सुनाते हैं। लक्ष्मण सुनते ही आगबबूला हो जाते हैं और दुष्टों को नष्ट करने के लिए कटिबद्ध हो जाते हैं। वे सीता के शील की प्रशंसा कर राम के चित्त को प्रसन्न करना चाहते हैं। परन्तु राम लोकापवाद के भय से सीता का परित्याग करने का ही निश्चय करते हैं। सेनापति कृतान्तवक्त्र को बुलाकर उसके साथ सीता को जिनमन्दिरों के दर्शन कराने के बहाने अटवी में भेज देते हैं। अटवी में जाकर कृतान्तवक्त्र अपनी पराधीन वृत्ति पर बहुत पश्चात्ताप करता है। गंगानदी के उस पार जाकर सेनापति कृतान्तवक्त्र सीता को राम का आदेश सुनाता है। सीता वज्र से ताड़ित हुई के समान मूर्च्छित हो पृथिवी पर गिर पड़ती है। सचेत होने पर आत्मनिरीक्षण करती हुई राम को सन्देश देती है कि जिस तरह लोकापवाद के भय से आपने मुझे छोड़ा इस तरह जिनधर्म को नहीं छोड़ देना। सेनापति वापस आ जाता है। सीता विलाप करती है कि उसी समय पुण्डरीकपुर का राजा वज्रजंघ सेना सहित वहाँ से निकलता है और सीता का विलाप सुन उसकी सेना वहीं रुक जाती है।
२०२-२१६ . अठानबेवाँ पर्व सेना को रुकी देख वज्रजंघ उसका कारण पूछता है। जब तक कुछ सैनिक सीता के पास जाते हैं तब तक वज्रजंघ स्वयं पहुँच जाता है। सैनिकों को देख सीता भय से काँपने लगती है। उन्हें चोर समझ आभूषण देने लगती है पर वे सान्त्वना देकर राजा वज्रजंघ का परिचय देते हैं। सीता उन्हें अपना सब वृतान्त सुनाती है और वज्रजंघ उसे धर्मबहिन स्वीकृत कर सान्त्वना देता है।
२१७-२२४ निन्यानबेवाँ पर्व सुसज्जित पालकी में बैठकर सीता पुण्डरीकपुर पहुँचती है। भयंकर अटवी को पार करने में उसे तीन दिन लग जाते हैं। वज्रजंघ बड़ी विनय और श्रद्धा के साथ सीता को अपने यहाँ रखता है। ...कृतान्तवक्त्र सेनापति सीता को वन में छोड़ जब अयोध्या पहुँचता है तो राम उससे सीता का सन्देश पूछते हैं। सेनापति सीता का सन्देश सुनाता है कि जिस तरह आपने लोकापवाद के भय से मुझे छोड़ा है उस तरह जिनेन्द्र देव की भक्ति नहीं छोड़ देना...। वन की भीषणता और सीता की गर्भदशा का विचार कर राम बहुत दुःखी होते हैं। लक्ष्मण आकर उन्हें समझाते हैं।
२२५-२३३ सौवाँ पर्व वज्रजंघ के राजमहल में सीता की गर्भावस्था का वर्णन। नौ माह पूर्ण होने के बाद सीता के गर्भ से अनंगलवण और मदनांकुश की उत्पत्ति होती है। इन पुण्यशाली पुत्रों की पुण्य महिमा से राजा वज्रजंघ का वैभव निरन्तर वृद्धिंगत होने लगता है। सिद्धार्थ नामक क्षुल्लक दोनों पुत्रों को विद्याएँ ग्रहण कराता है।
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