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विषयानुक्रमणिका
नब्बेवाँ पर्व शूलरत्न से मधुसुन्दर के वध का समाचार सुन चमरेन्द्र कुपित होकर मथुरा नगरी में महामारी बीमारी फैलाता है। कुलदेवता की प्रेरणा पाकर शत्रुछ अयोध्या को चला जाता है।
१६८-१७० एकानबेवाँ पर्व शत्रुघ्न का मथुरा के प्रति अत्यधिक अनुराग क्यों था ? श्रेणिक को इस प्रश्न का उत्तर देते हुए गौतम स्वामी शत्रुघ्न के पूर्व भवों का वर्णन करते हैं।
१७१-१७५ बानबेवाँ पर्व सुरमन्यु आदि सप्तर्षियों के विहार से मथुरापुरी के सारे उपसर्ग दूर हो जाते हैं। सप्तर्षि मुनि कदाचित् आहार के लिए अयोध्यापुरी आते हैं। उन्हें देख अर्हद्दत्त सेठ विचारता है कि अयोध्या के आस-पास जितने मुनि हैं उन सबकी वन्दना मैंने की है। ये मुनि वर्षाऋतु में गमन करते हुए यहाँ आये हैं अतः आहार देने के योग्य नहीं है यह विचार कर उसने उन्हें आहार नहीं दिया। तदनन्तर द्युति भट्टारक नामक मुनि के मुख से उन्हें चारणऋद्धि के धारक जान अर्हद्दत्त सेठ अपने थोथे विवेक पर बहुत दुःखी होता है। कार्तिकी पूर्णिमा को निकट जान अर्हद्दत्त सेठ मथुरा नगरी जाता है और उक्त मुनियों की पूजा कर अपने आपको धन्य मानता है। उन्हीं मुनियों का सीता के घर आहार होता है।
१७६-१८२ तेरानबेवाँ पर्व राम के लिए श्रीदामा और लक्ष्मण के लिए मनोरमा कन्या की प्राप्ति का वर्णन।
१८३-१८७ चौरानबेवाँ पर्व राम और लक्ष्मण अनेक विद्याधर राजाओं को वश करते हैं। लक्ष्मण की अनेक स्त्रियों तथा पुत्रों का वर्णन।
१८८-१९० पंचानबेवाँ पर्व सीता ने स्वप्न में देखा कि दो अष्टापद मेरे मुख में प्रविष्ट हुए हैं और मैं पुष्पक विमान से नीचे गिर गयी हूँ। राम स्वप्नों का फल सुनाकर सीता को सन्तुष्ट करते हैं। द्वितीय स्वप्न को कुछ अनिष्ट जान उसकी शान्ति के लिए मन्दिरों में जिनेन्द्र भगवान् का पूजन करते हैं। सीता को जिन-मन्दिरों की वन्दना का दोहला उत्पन्न हुआ है। राम उसकी पूर्ति करते हैं। मन्दिरों को सजाया जाता है तथा राम सीता के साथ मन्दिरों के दर्शन करते हैं। वसन्तोत्सव मनाया जाता है।
१६१-१६५ छयानबेवाँ पर्व श्रीराम महेन्द्रोदय नामक उद्यान में स्थित हैं। प्रजा के चुने हुए लोग रामचन्द्र जी से कुछ प्रार्थना करने के लिए जाते हैं पर उनसे कुछ कह सकने के लिए वे सामर्थ्य नहीं जुटा पाते हैं। दाहिनी आँख का अधोभाग फड़कने से सीता भी मन-ही-मन दुःखी है। सखियों के कहने से वह जिस किसी तरह शान्त हो मन्दिर में शान्तिकर्म करती है। भगवान् का अभिषेक करती है। मनोवांछित दान देती है।
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