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णमो सिध्दाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
उन्होंने साक्षात्कार किया, उससे जन-जन को उपकृत करने हेतु उन्होंने धर्म-देशना दी।
अर्थ-रूप में उन्होंने तत्त्वों का विवेचन किया। उनके प्रमुख शिष्य गणधरों ने धर्मशासन के हितार्थ सूत्र-रूप में उनका संग्रथन किया। भगवान् का जो उपदेश इस प्रकार सूत्र-रूप में संकलित हुआ, वही आगमों के रूप में आज हमें प्राप्त है।
आगम का अर्थ
आगम विशिष्ट ज्ञान के सूचक हैं। उनमें जो ज्ञान दिया गया है, वह परंपरा से प्राप्त है क्योंकि सभी तीर्थंकर जो धर्म-देशना देते हैं, भावात्मक रूप में उसमें भेद नहीं होता, इसलिये वह ज्ञान आगम है। वह प्रत्यक्ष या तत्-सदृश बोध से जुड़ा हुआ है। दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि ज्ञानावरणीय कर्मों के अपगत- क्षीण हो जाने से जिनका ज्ञान सर्वथा निर्मल एवं शुद्ध और अविसंवादि परस्पर विरोध रहित हो जाता है, ऐसे महापुरुष आप्त कहे जाते हैं। ___“वे जो कहते हैं वह सर्वथा विश्वास योग्य और श्रद्धा योग्य होता है। ऐसे आप्त पुरुषों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का संकलन आगम है।"२
आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी ने 'जैनागम साहित्य' नामक विशाल ग्रंथ में आगम साहित्य का महत्त्व, आगम के पर्यायवाची शब्द, आगम की परिभाषा इत्यादि विभिन्न पक्षों को लेते हुए प्राक्तन आचार्यों के मन्तव्यों का विस्तार से विवेचन से किया है, जिससे अध्येताओं को इस संबंध में यथेष्ट परिचय मिलता है।
जैसा कि पहले संकेत किया जा चुका है, जैनागमों के रूप में वर्तमान काल में जो साहित्य हमें प्राप्त है, वह भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित धर्म-देशना के आधार पर संग्रथित है।
आगमों की भाषा
भाषा का जीवन के साथ अन्यतम संबंध है। भाषा ही अभिव्यक्ति का माध्यम है। भाषा द्वारा एक व्यक्ति दूसरे के भावों को समझ सकता है तथा अपने भावों को व्यक्त कर सकता है, जिसे सुनकर दूसरे लोग भी उसके विचारों से अवगत हो सकते हैं। आज हमें सर्वदर्शी, सर्वज्ञानी तीर्थंकरों, महापुरुषों, आचार्यों, विशिष्ट ज्ञानियों आदि के विचार भाषा के ही कारण प्राप्त हैं।
१. आवश्यक-नियुक्ति, गाथा-९२. | २. प्रमाणनयतत्त्वालोक, अध्याय-४, सूत्र-१. ३. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, पृष्ठ : ३-१०.