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विशाल भारत के इतिहास पर स्थूल दृष्टि १४७ में बौद्ध धर्म की बुनियाद को पाताल तक पहुँचा दिया। इसी समय में (ई० ४१६ में ) एक और विद्वान, बुद्धभद्र ने चीन में जाकर ध्यान संप्रदाय की स्थापना की।
पाँचवीं शताब्दी में कई विद्वान् प्रचारक लंका और जावा से चीन में गए और उन्होंने वहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार किया। इसके अतिरिक्त काश्मीर का राजकुमार, जो राज-पाट को लात मारकर बौद्ध भिक्षु हो गया था, अपने धर्म का प्रचार करने चोन गया। वहाँ पर उसने दो बौद्ध-विहारों की स्थापना की और भिक्षुणियों की भी एक संस्था चलाई। छठी शताब्दी में समुद्र मार्ग के द्वारा लंका और मलाया के टापुओं में से होते हुए चीन से भारतवर्ष का अधिक आना जाना शुरू हुआ। एक और बड़ा बौद्ध पंडित परमार्थ नामक (४२०५००) सन् ४४० ई० में चीन में पहुँचा। वहाँ पर उसने बसुबंधु तथा अन्य विद्वानों के ग्रंथों के अनुवाद किए और योगाचार्य संप्रदाय की स्थापना की।
इस काल में चीन और भारत का विशेष संबंध हो गया। बहु से लोग दोनों देशों से आने जाने लगे। इत्सिंग तथा
युवानच्वांग के लेखों से मालूम होता है ६ठी शताब्दी से ११
कि चीन इत्यादि देशों में भारतीय धर्म वीं त । चीन और भारत
के प्रति बड़ी भारी श्रद्धा तथा प्रेम पत्पन्न का संध
हो गया था। सब देश इसे अपना प्राध्यामिक गुरु मानने लगे थे। इस समय में जिन जिन भारतीय ग्रंथों का अनुवाद चीनी भाषा में हुआ वे सब चीन के साहित्य का एक मूल्यवान भाग बन गए हैं। भारत के प्रति इतनी भक्ति हुई कि यहाँ की कला, विज्ञान, दर्शन
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