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औरंगजेब का "हितोपदेश" १७३ ग्रंथकर्ता ने पुस्तक की इतिश्री के आगे एक दोहा और दिया है जिसमें लिखा है कि-"स्यामदास नित नेम ते हित उपदेशहि जोय"-इससे अनुमान होता है कि इसके रचयिता श्यामदास थे। शायद लेखक और रचयिता एक ही हो । अंत का पत्र जब अप्राप्य है तब नहीं कहा जा सकता कि उसमें श्यामदास अथवाशंकर पंत संबंधी कितना इतिहास लिखा था। इन बातों का पता लगाना इतिहास के खोजियों का काम है। संवत् १८४४ स्पष्ट है। "अंकानां वामतो गति:" के नियम का यहाँ पालन नहीं हो सकता। "रामरेख" तीर्थ भी तलाशकर प्रकाश डालने योग्य है। किसी बिहारी सज्जन के ध्यान देने से शायद "रामरेख" के संबंध से श्यामदास का भी पता लग जाय क्योंकि घटना अधिक पुरानी नहीं है।
बादशाह औरंगजेब हिंदू संस्कृति का कट्टर शत्रु था। यदि उसकी चलती तो सारे हिंदुस्तान को मुसलमानिस्तान बना डालता। उसके काले कारनामे भारतवर्ष के इतिहास को सदियों तक कलंकित करते रहेंगे। परंतु जिसमें उत्कृष्ट दोष होते हैं उसमें कभी कभी गुण भी उत्कृष्ट हुआ करते हैं। "शत्रोरपि गुणा वाच्या, दोषा वाच्या गुरोरपि"-इस लोकोक्ति के अनुसार हमें उसके गुणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए । यदि इस पोथी की रचना के अनुसार ये दोहे उसी के उपदेशों के आधार पर रचे गए हो तो वह वास्तव में बहुत ही गुणवान् था। इसके एक एक दोहे के परिणाम पर दृष्टिपात करने से वह लाख लाख रुपए में भी सस्ता है। इसमें धर्म है, राजनीति है और लोकाचार है। और जो कुछ है वह यावनी कट्टरपन को छोड़कर सांप्रदायिक बातों से बिलकुल
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