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औरंगजेब का "हितोपदेश”
तिन ये बातें समुझि के निज विचार में ल्याय । हित उपदेशहि जानि के सबको दई लिखाय ॥ २ ॥ सो ये बातें श्रवन कै श्रीमत् शंकर पंत । सेवक से आज्ञा दई याहि प्रकासे अंत ॥ ३ ॥ नरपति भाखा यामिनी माँझ कही ये बात ! ताकी ब्रजभाषा करी जामें अर्थ लखात ॥ ४ ॥ अल्पबुद्धि तें ग्रंथ को दोहा-बद्ध बनाय । ताके भाव पदार्थ को दीन्हों प्रकट दिखाय ॥ ५ ॥ जो कोड ज्ञानी संत जन याकों पढ़ें विचार | चलें महाजन पंथ कों जई होय संसार || ६ || ताकी कीरति जगत में गावें सबही वाक (?) । देहपात के होत हो पावैं सुभ परलोक ॥ ७ ॥ स्यामदास या रीति ते, समुझि चलें जो संत । पावै निज पुरुषार्थ ते रामचरन एक आठ औ चार के आगे सो संवत् यह जानिए गनिकै कर माघ मास और सिसिर ऋतु, मकर रास भे भान । तिथि वसंत की पंचमी वासर खाम (१) प्रमान ॥ १०॥ वन चरित्र जहँ राम ने वधी तारिका नार । कीन्ही जाकी पूर्नता विस्वामित्र सँवार ॥ ११ ॥ सो गंगा के तट विसे बकसर गाँव सुहाय । रामरेख तीरथ जहाँ प्रति पुनीत दरसाय ॥ १२ ॥ तहाँ ग्रंथ की पूर्तता सहज भई निरधार | गुरु हरि सेवक संत जे अंत करें विचार ॥ १३ ॥
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को अंत ॥ ८ ॥ वेदहि जान ।
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परमान ॥ ६ ॥
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