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हिंदो की गद्य-शैली का विकास २०१ उन्हें मालूम था कि साधारण हिंदू जनता, जिसमें उन्हें अपना धर्म फैलाना था, इसी भाषा का व्यवहार करतो है। ____संवत् १८७५ में जब ईसाइयों की धर्म-पुस्तक का अनुवाद हिंदी भाषा में हुआ तब देखा गया कि उसमें विशुद्ध हिंदी भाषा का ही उपयोग हुआ है। इस समय ऐसी अनेक रचनाएँ तैयार हुई जिनमें साधारणतः ग्रामीण शब्दों को तो स्थान मिला परंतु प्ररबी फारसी के शब्द प्रयुक्त नहीं हुए। 'तक' के स्थान पर "लौं', 'वक्त' के स्थान पर 'जून' 'कमरबंद' के लिये 'पटुका' का ही व्यवहार हुमा है। केवल शब्दों का ही परिष्कार नहीं हुआ वरन् इस भाषा में शब्दावली, भावभंगी और ढंग सभी हिंदी-विशुद्ध हिंदी-के थे। एतत्कालीन ईसाई-रचनाओं में भाषा विशुद्ध और परिमार्जित रूप में प्रयुक्त हुई है।
इन ईसाइयों ने स्थान स्थान पर विद्यालय स्थापित किए । इनकी स्थापित पाठशालाओं के लिये पाठ्य पुस्तके भी सरल परंतु शुद्ध हिंदी में लिखी गई। कलकत्ते और आगरे में ऐसी संस्थाएँ निश्चित रूप से स्थापित की गई, जिनका उद्देश्य ही पठन पाठन के योग्य पुस्तकों का निर्माण करना था। इन संस्थानों ने उस समय हिंदी का बड़ा उपकार किया। राजा शिवप्रसाद प्रभृति हिंदी के उन्नायकों के लिये अनुकूल वातावरण इन्हीं की बदौलत तैयार हुआ। इन ईसाइयों ने भूगोल, इतिहास, विज्ञान और रसायन शास्त्र प्रभृति विषयों की पुस्तके प्रकाशित की। कुछ दिनों तक यही क्रम चलता रहा। बाद को प्रकाशित पुस्तकों की भाषा पर्याप्त रूप में परिमार्जित हो गई थी। जैसे
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