Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 113
________________ २४६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका लेख साधारणत: अधिक व्यापक एवं व्यावहारिक हो सकेगा। जैसे "सरकार ने भी कवि-वचन-सुधा की सौ कापियाँ खरीदी थीं। जब उक्त पत्र पाक्षिक होकर राजनीति संबंधी और दूसरे लेख स्वाधीन भाव से लिखने लगा तो बड़ा आंदोलन मचा, यद्यपि हाकिमों में बाबू हरिश्चंद्र की बड़ी प्रतिष्ठा थी, वह आनरेरी मैजिस्ट्रेट नियुक्त किए गए थे तथापि वह निडर होकर लिखते रहे और सर्व साधारण में उनके पत्र का आदर होने लगा। यद्यपि हिंदी भाषा के प्रेमी उस समय बहुत कम थे तो भी हरिश्चंद्र के ललित ललित लेखों ने लोगों के जी में ऐसी जगह कर ली थी कि कवि-वचन-सुधा के हर नंबर के लिये लोगों को टकटकी लगाए रहना पड़ता था। जो लोग राजनीतिक दृष्टि से उसे अपने विरुद्ध समझते थे वह भी प्रशंसा करते थे। दुःख की बात है कि बहुत जल्द कुछ चुगुलखोर लोगों की दृष्टि उस पर पड़ी। उन्होंने कवि-वचन-सुधा के कई लेखों को राजद्रोहपूरित बताया, दिल्लगी की बातों को भी वह निंदासूचक बताने लगे। मरसिया नामक एक लेख उक्त पत्र में छपा था, यार लोगों ने कोटे लाट सर विलियम म्योर को समझाया कि यह श्राप ही की खबर ली गई है। सरकारी सहा. यता बंद हो गई। शिक्षा-विभाग के डाइरेक्टर केंपसन साहब ने बिगड़कर एक चिट्ठी लिखी। हरिश्चंद्रजी ने उत्ता देकर बहुत कुछ समझाया बुझाया । पर वहीं यार लोगों ने जो रंग चढ़ा दिया था वह न उतरा । यहाँ तक कि बाबू हरिश्चंद्रजी की चलाई "हरिश्चंद्र-चंद्रिका" और "बालाबोधिनी" नामक दो मासिक पत्रिकाओं की सौ सौ कापियाँ प्रांतीय गवनमेंट लेती थी वह मी बंद हो गई।" प्रत्येक विषय के इतिहास में एक सामान्य बाव दिखाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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