Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 111
________________ २४४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका कर रस निकाला जाता था । इतने में देखा कि बादल उमड़ रहे हैं । इतने में चीलें नीचे उतर रही हैं, तबीअत भुरभुरा उठी । इधर घटा बहार में बहार | वायु का वेग बढ़ा, चीलें श्रदृश्य हुई, अँधेरा छाया, बूँदें गिरने लगीं । साथ ही तड़तड़ धड़धड़ होने लगी, देखो श्रोले गिर रहे हैं । प्रोले थमे, कुछ वर्षा हुई । बूटी तयार हुई, बम भोला एक लोटा भर चढ़ाई । ठीक उसी समय लालडिग्गी मिंटो ने बंग देश के भूतपूर्व छोटे लाट उडवर्न की ठीक एक ही समय कलकत्ते में यह दो आवश्यक काम हुए । भेद इतना ही था कि शिवशंभु के बरामदे के छत पर बूँदें गिरती थीं और लार्ड मिंटो के सिर या छाते पर ।" कह शर्माजी ने पर बड़े लाट मूर्ति खोली । इससे एक समय सू रुलाती है "चिंता-स्रोत दूसरी ओर फिरा । विचार श्राया कि काल अनंत है । जो बात इस समय है वह सदा न रहेगी । अच्छा भी आ सकता है। जो बात श्राज आठ आठ वही किसी दिन बड़ा आनंद उत्पन्न कर सकती है । एक दिन ऐसी ही काली रात थी । इससे भी घोर अँधेरी भादों कृष्ण अष्टमी की अर्ध रात्रि, चारों ओर घोर अंधकार-वर्षा होती थी बिजली कौंदती थी घन गरजते थे । यमुना उत्ताल तरंगों में बह रही थी । ऐसे समय में एक दृढ़ पुरुष एक सद्यजात शिशु को गोद में लिए मथुरा के कारागार से निकल रहा था—वह और कोई नहीं थे यदुवंशी महाराज वसुदेव थे और नवजात शिशु कृष्ण । वही बालक आगे कृष्ण हुआ, ब्रजप्यारा हुश्रा, उस समय की राजनीति का अधिष्ठाता हुआ । जिधर वह हुआ उधर विजय हुई | जिसके विरुद्ध हुना पराजय हुई | वही हिंदुओं का सर्वप्रधान अवतार हुआ और शिवशंभु शर्मा का इष्टदेव । वह कारागार हिंदुओं के लिये तीर्थ हुआ ।" इन अवतारों से इनकी व्यावहारिकता का पता लग जाता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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