________________
२४८
नागरीप्रचारिणी पत्रिका वाचक 'शांत' को 'शांति' भाववाचक संज्ञा, और 'नाना देश में'. 'श्यामताई', 'जात्याभिमान', 'उपरोक्तं', '३६ वर्ष में', 'इच्छा किया, 'पाशा किया' आदि प्रयोग भाषा व्याकरण की अवहेलना के स्पष्ट परिचायक हैं। इस प्रकार की त्रुटियाँ कुछ तो प्रमादवश हुई हैं और कुछ व्याकरण की अज्ञानतावश। इसके अतिरिक्त विरामादिक चिह्नों के प्रयोग के विषय में भी इस समय के लेखक विचारहीन थे। प्रत्येक लंबे वाक्य के वाक्यांशों के बीच कुछ चिह्नों की आवश्यकता अवश्य पड़ती है, क्योंकि इनकी सहायता से हमें यह शीघ्र ही ज्ञात हो जाता है कि एक वाक्यांश का संबंध दूसरे वाक्यांश के साथ किस प्रकार का है और उसका साधारण स्थान क्या है। इन चिहों के अभाव में सदैव इस बात की आशंका बनी रहेगी कि वाक्य का वस्तुतः अभीष्ट अर्थ क्या है। साथ ही ऐसे अवसर उपस्थित हो सकते हैं कि उनका साधारण अर्थ ही समझना कठिन हो जाय । यदि व्याकरण के इस अंग पर ध्यान दिया जाता तो संभव है कि पंडित प्रतापनारायण मिश्र की शैली अधिक व्यवस्थित तथा स्पष्ट होती। मिश्रजी इन चिह्नों का केवल कहीं कहीं प्रयोग करते थे। इन चिह्नों के सामान्य संस्थान एवं व्यवहार के अभाव के कारण उनकी भाषा-शैली की व्यावहारिकता एवं बोधगम्यता नष्ट हो गई है।
गद्य के इस वर्तमान काल में पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी का स्थान बड़े महत्व का है। पूर्व काल में भाषा की जो
.. साधारण शिथिलता थी अथवा व्याकरणमहावीरप्रसाद द्विवेदी ।
' संबंधी जो निर्बलता थी उसका परिहार द्विवेदीजी के मत्थे पड़ा। अभी तक जो जैसा चाहता था,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com