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नागरीप्रचारिणी पत्रिका की प्रणाली भी सरल पाई जाती है। भाषा इसकी मानो चिकोटी काटती चलती है। इसमें एक प्रकार का मसखरापन कूट कूटकर भरा रहता है। व्यंग्य भाव भी स्पष्ट समझ में पा जाता है।
इस म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन ( जिसे अब कुछ लोग कुरसीमैन भी कहने लगे हैं) श्रीमान् बूचा शाह हैं। बाप दादे की कमाई का लाखों रुपया आपके घर भरा है। पढ़े लिखे आप राम का नाम ही हैं। चेयरमैन श्राप सिर्फ इसलिये हुए हैं कि अपनी कारगुजारी गवर्नमेंट को दिखाकर आप रायबहादुर बन जाये और खुशामदियों से अाठ पहर चौंसठ घड़ी घिरे रहें। म्युनिसिपैलिटी का काम चाहे चले चाहे न चले, आपकी बला से। इसके एक मेंबर हैं बाबू बखिशशराय । अापके साले साहब ने फी रुपए तीन चार पंसेरी का भूसा ( म्युनिसिपैलिटी को ) देने का ठीका लिया है। आपका पिछला बिल १० हजार रुपए का था। पर कूड़ा-गाड़ी के बैलों और भैंसों के बदन पर सिवा हड्डी के मांस नज़र नहीं आता। सफाई के इंसपेक्टर हैं लाला सतगुरुदास। आपकी इसपेकृरी के ज़माने में, हिसाब से कम तनख्वाह पाने के कारण, मेहतर लोग तीन दफे हड़ताल कर चुके हैं। फजूल जमीन के एक टुकड़े का नीलाम था। सेठ सर्वसुख उसके ३ हज़ार देते थे। पर उन्हें वह टुकड़ा न मिला। उसके ६ महीने बाद म्युनिसिपैलिटी के मेंबर पं० सत्यसर्वस्व के ससुर के साले के हाथ वही ज़मीन एक हज़ार पर बेंच दी गई।" ___ इस वाक्य-समूह के शब्द शब्द में व्यंग्य की झलक पाई जाती है । शब्दावली के संचय में भी कुशलता है; क्योंकि उनका यहाँ बल विशेष है। इसके उपरांत जब हम उनकी उस शैली के स्वरूप पर विचार करते हैं जिसका उपयोग उन्होंने
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