Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 95
________________ २२८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका बल को दिखाना प्रारंभ किया। भाषा को सानुप्रास बनाने का बीड़ा उठाना, उसमें अलौकिकता उपस्थित करने का प्रयत्न करना, उसको स्वच्छ और दिव्य बनाए रखने की साधना करना 'प्रेमधन' ही का कार्य था। इसका प्रभाव उनकी भाषा पर यह पड़ा कि वह दुरूह और अव्यावहारिक बनने लगी। अभी इतनी उन्नति होने पर भी भाषा का इतना अच्छा परिमार्जन नहीं हुआ था कि उसमें जटिलता और विद्वत्ता दिखाने का सफल प्रयास किया जा सकता। बड़े बड़े वाक्य लिखना बुरा नहों। परंतु इनके वाक्यों का प्रस्तार तथा तात्पर्य-बोधन बड़ा दुरूह होता था। कहीं कहीं तो वाक्यों की दुरूहता एवं लंबाई से जी ऊब उठता है। उनमें से एक प्रकार की रुखाई उत्पन्न हो पड़ती है। उनकी यह वाक्य-विशालता केवल गद्य वाक्यात्मक प्रबंधों में ही नहीं प्राबद्ध रहती थी वरन् साधारण रचनाओं और भूमिका-लेखन तक में भी दिखाई पड़ती है। जैसे__"प्रयाग की बीती युक्त प्रांतीय महाप्रदर्शिनी के सुबृहत् आयोजन और उसके समारंभोत्कर्ष के आख्यान का प्रयोजन नहीं है, क्योंकि वह स्वत: विश्वविख्यात है। उसमें सहृदय दर्शकों के मनोरंजन और कुतूहलवर्धनार्थ जहाँ अन्य अनेक अद्भुत और अनोखी क्रीड़ा, कौतुक और विनोद के सामग्रियों के प्रस्तुत करने का प्रबंध किया गया था, स्थानिक सुप्रसिद्ध प्राचीन घटनाओं का ऐतिहासिक दृश्य दिखाना भी निश्चित हुश्रा और उसके प्रबंध का भार नाट्यकला में परम प्रवीण प्रयाग युनिवर्सिटी के ला कालेज के प्रिंसिपल श्रीयुत मिस्टर आर० के० सोराबजी एम० ए० बैरिस्टर-ऐट-ला को सौंपा गया, जिन्होंने अनेक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाओं को छाँट और उन्हें एक रूपक के रूप में ला सुविशाल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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