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नागरीप्रचारिणी पत्रिका ___ भाषा संबंधी इन त्रुटियों के अतिरिक्त व्याकरण संबंधी भूलें इन्होंने बहुत की हैं। इनकी रचना से व्याकरण की अस्थिरता स्पष्ट झलकती है। 'जात्याभिमान' 'उपरोक्त' 'पाँच सात घरस में 'भाषा इत्यादि सभी निर्जीव से हो रहे हैं' इत्यादि भूलें इनकी रचना में साधारणत: पाई जाती हैं। 'प्रकिल का (के) कारण' 'ई' ( हैं ही ) 'के' (कर) 'मुख के (से) एक वार' इत्यादि असुविधाजनक प्रयोग भी अधिकता से मिलते हैं। इन न्यूनताओं के कारण इनकी भाषा त्रुटिपूर्ण एवं शिथिल रह गई है। परंतु इतना सब होते हुए भी उसमें जो कहने का आकर्षक ढंग है वह बड़ा ही मनोहर ज्ञात होता है, उसमें एक विचित्र बाँकापन मिलता है जो दूसरे लेखकों में नहीं मिलता। इनकी रचना में भट्टजी की भाँति वैयक्तिक छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। साधारण रूप में भाषा में बड़ी रोचकता है। ___'यदि सचमुच हिदी का प्रचार चाहते हो तो आपस के जितने कागज पत्तर लेखा जोखा टीप तमस्सुक हैं। सबमें नागरी लिखी जाने का उद्योग करो। जिन हिंदुओं के यहाँ मौलवी साहब बिसमिल्लाह कराते हैं उनके पंडितों से अक्षरारंभ कराने का उपकार करो चाहे कोई हँसे चाहे धमकावै जो हो सो हो तुम मनसा वाचा कर्मणा उर्दू की लुलू देने में सबद्ध हो इधर सरकार से भी झगड़े खुशामद करो दति निकालो पेट दिखानो मेमोरियल भेजो एक बार दुतकारे जाओ फिर धन्ने धरो किसी भांति हतोत्साह न हो हिम्मत न हारो जो मनसाराम कचियाने लगें तो यह मंत्र सुना दो......बस फिर देखना पाँच सात बरस में फारसी छार सी उड़ जायगी। नहीं तो होता तो परमेश्वर के किए है हम सदा यही कहा करेंगे "पीसें का चुकरा पा का छीता हरन" "घूरे के लत्ता
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