Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 51
________________ १८४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका रहा; परंतु जैसे जैसे इन मुसलमान कवियों की वृद्धि होती गई, उनमें अपनापन आता गया और उत्तरोत्तर उनकी कविताओं में अरबी और फारसी के शब्दों का प्रयोग बढ़ने लगा। संवत् १७६८ से १८३७ के पास तक आते आते हम देखते हैं कि अरबी और फ़ारसी का मेल अधिक हो जाता है। यो तो मिर्ज़ा मुहम्मद रफी ( सौदा) की रचनाओं में से कोई कोई तो वस्तुत: उसी प्रकार की हैं जैसे कि खुसरो की ।अजब तरह की है एक नार । उसका मैं क्या करूँ विचार । वह दिन डूबे पी के संग। लागी रहे निसी के अंग ॥ मारे से वह जी उठे बिन मारे मर जाय । बिन भावों जग जग फिरे हाथों हाथ बिकाय ॥ नार, विचार, पी, संग, निसि, अंग, बिन, जग, हाथ, बिकाय इत्यादि शब्दों का कितना विशुद्ध प्रयोग है। इसी प्रकार के शब्द, हम देख चुके हैं कि, अशरफ, सादी और बली की कविता में भी मिलते थे। साधारणतः सौदा के समय में भाषा का यह रूप न था। उस समय तक अरबी और फ़ारसी के शब्दों ने अपना आधिपत्य जमा लिया था, परंतु सौदा की इन पंक्तियों में हमने स्पष्ट देख लिया कि जो धारा खुसरो और कबीर के समय से निःसृत हुई थी वही इस समय तक बह रही थी। साहित्य के इतिहास में प्रायः देखा जाता है कि ६० प्रतिशत भाषाओं में प्रारंभ कविता की रचनाओं से होता है। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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