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(८) औरंगजेब का “हितोपदेश'
[ लेखक-पंडित लजाराम मेहता, बंदी ] मेरे भानजे पंडित रामजीवन जी नागर हिंदी के उन सुलेखकों में से हैं जो काम करके अपना नाम प्रकाशित करने का ढोल नहीं पीटना चाहते। उनके यहाँ उनके पूर्वजों की संगृहीत अनेक पुस्तकों में से एक बढ़िया पुस्तक, जिसे पुस्तक-रत्न कहा जा सकता है, प्राप्त हुई है। राजपूताना और मध्य भारत के रजवाड़ों में यदि पुस्तके खोजने का कार्य नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा किया जाता तो अब तक न मालूम ऐसे ऐसे कितने ग्रंथ-रत्न प्राप्त हो सकते थे। इस पोथी का नाम “हित-उपदेश" है । पुस्तक का प्रारंभ करने से पूर्व एक पृष्ठ पर ब्रह्माजी का और दूसरे पर विष्णु, लक्ष्मी अथवा कृष्णराधिका का चित्र है। चित्रों में अनेक रंग हैं और वे बढ़िया हैं। कलम भी बहुत बारीक है किंतु पुरानी चित्रकारी में भावों का प्रायः प्रभाव होता था उसी तरह इनमें भी पता नहीं है।
इस "हित-उपदेश" की पृष्ठ-संख्या २६ है और प्रत्येक पृष्ठ में गिनी हुई सात सात पंक्तियाँ हैं, न न्यून और न अधिक। लिपि इतनी बारीक है कि जिसे पढ़ने में शायद ऐनक न लगानेवाले व्यक्ति को भी चश्मे की शरण लेनी पड़े। इतनी बारीक भी नहीं है कि जिसके लिये "आई ग्लास" की सहायता अपेक्षित हो । लिपि बहुत बढ़िया और किसी ऐसे व्यक्ति की लिखी हुई है जिसके लिये कहा जा सकता है कि अक्षर
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