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नागरीप्रचारिणी पत्रिका सिंह ने चित्तौड़ के स्थान में राजधानी उदयपुर (वि० सं० १६१६ में ) बसाना प्रारंभ किया था। इसलिये उक्त श्रीमानों का अधिकतर निवास उदयपुर में ही होता था। अतः राव जयमल्ल को ३०० ग्रामों सहित बदनौर का परगना प्रदान करके चित्तौड़ का दुर्गाधीश बनाया गया जहाँ पर वे चार वर्ष पर्यत अपना कर्तव्य पालन करते रहे। राव जयमल्ल के वंशज प्राज भी सहस्रों की संख्या में मारवाड़ तथा मेवाड़ में लाखों मुद्रा वार्षिक आय की भूमि पर अधिकार रखते हैं। इस लेख के लेखक को भी राव जयमल्ल का एक तुद्र वंशज होने का अभिमान प्राप्त है। द्वितीय योद्धा रावत फत्ता, मेवाड़ के महाराणा लाखा के ज्येष्ठ राजकुमार सुप्रसिद्ध रावत चूंडा ( इन्होंने पितृभक्ति से राजर्षि भीष्म का अनुकरण करके चित्तौड़ का राजसिंहासन अपने वैमातृज कनिष्ठ भाई को दे दिया था।) के वंशज रावत जग्गा के पुत्र थे। उनकी संतान भी प्रामेट आदि कई प्रतिष्ठित ठिकानों पर अधिकार रखती है। जब सम्राट अकबर ने विशाल वाहिनी सहित चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब राव जयमल्ल फत्ता प्रादि वीर छः मास से अधिक काल तक घोर संग्राम करते रहे और अनेक प्रलोभन देने पर भी स्वधर्म तथा राजभक्ति पर अचल रहे। इस जगत्प्रसिद्ध समर का वर्णन अनेक इतिहासों में सविस्तर लिखा होने से यहीं पर लेखनी को विश्राम देता हूँ।
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