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औरंगजेब का “हितोपदेश' १७५ विद्वानों की कृपा से यदि इसका घटता पाठ पूर्ण होकर पुस्तक शुद्ध हो सके तो मेरी आयु के अंतिम वर्षों में इसका संपादन कर लेखनी की सार्थकता हो। कृतकार्य होने पर मैं अपने आपको धन्य समदूंगा और जो महाशय मुझ अकिंचन को इस कार्य में सहायता प्रदान करेंगे उनके नामी नाम पुस्तक के साथ प्रादरपूर्वक प्रकाशित किए जायँगे। मुझे अपने नाम से भी मतलब नहीं, यदि किसी विद्वान के पास यह पोथी हो तो मैं इसकी प्रति उतरवाकर भेज सकता हूँ।
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