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नागरीप्रचारिणी पत्रिका बहुत जमे हुए थे। प्रत्येक पत्र की लंबाई ३ इंच और चौड़ाई २। होने पर भी हाशिया अधिक छोड़कर जितने भाग में दोहे लिखे गए हैं उसका नाप लंबा २॥ इंच और चौड़ो १ इंच रक्खी गई है। लिपि की बारीकी का इसी से अनुमान किया जा सकता है कि इतने से क्षेत्रफल में ३॥ दोहों का समावेश किया गया है। अक्षरों की मोड़ से अनुमान होता है कि
लेखक कोई रामस्नेही साधु था। जिल्द इस पोथी की, • जिसे साइज के लिहाज से गुटका कहा जाता है, पुराने ढंग की बहुत बढ़िया किंतु टूटी हुई है। पुट्ठा साफ, कड़ा और समान है। इतनी सफाई है जितनी आजकल कल के बने हुए विलायती पुट्ठों में नहीं पा सकती।
इस पुस्तक के दो पत्र खो गए हैं। एक २१ का और दूसरा "इतिओ' के बाद का। इक्कीसवाँ पत्र खो जाने से दोहे ११४ से १२० तक का अभाव है और अंतिम पत्र नष्ट हो जाने का फल यह हुआ है कि "इतिश्री" के बादवाले दूसरे दोहे के अंतिम भाग में "और संत के रीति को पावै सहज समा..."के बाद "ज" का अभाव है। कौन कह सकता है कि इसके बाद कितने दोहे थे। संभव है कि उस जगह लेखक का नाम और पुस्तक लिखने की तिथि तथा संवत् लिखा हो। पुस्तक कहीं कहीं अशुद्ध अवश्य है किंतु ऐसी प्रशुद्ध नहीं जो थोड़ा विचार करने से शुद्ध न हो सके।
पुस्तक के अंत में १५५ से १६३ तक के १३ दोहों में पुस्तक-रचना का कुछ इतिहास भी दिया गया है
"बादशाह जो हिंद को प्रालिम आलमगीर । बुद्धिवंत सर्वज्ञ जो दयावान मतिधीर ॥१॥
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