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नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाषा का एक दोहा पाषाण पर खुदवाकर दोनों गजारूढ़ प्रतिमाओं के मध्य में द्वार के ऊपर लगवाया गया । वह दोहा इस प्रकार है--
दोहा जयमल बड़ताँ जीमणे फत्तो बावें पाश । हिंदू चढ़िया हाथियाँ अडियो जश प्राकाश ।। इस दोहे का भावार्थ इस प्रकार है कि "बाहर से द्वार में प्रवेश करते समय दाहिनी ओर जयमल्ल की प्रतिमा और वाम पार्श्व में फत्ता की मूर्ति है; ये दोनों हिंदू वीर हाथियों पर चढ़े हुए हैं और इन वीरों का सुयश (पृथ्वी से भी आगे) आकाश को स्पर्श कर चुका है।" राजा बीरबल आदि विद्वानों की सत्संगति से बादशाह भी हिंदी कविता करता था, जिसको कई पुरातत्त्ववेत्ता स्वीकार करते हैं, फिर दोहे में हिंदू शब्द रखने से यह किसी मुसलमान की रचना पाई जाती है। इसलिये कई विद्वान उपर्युक्त दोहे को स्वयं बादशाह की रचना मानते हैं। जो कुछ हो, परंतु बादशाह ने अपने प्रतिपक्षी वीरों की प्रतिमाएँ बनवाकर अनुकरणीय गुणग्राहकता का परिचय दिया था। अकबर बड़ा दूरदर्शी और राजनीतिविशारद था, इसलिये उक्त कार्य में राजनैतिक युक्ति भी थी जिससे राजभक्त वीरों का उत्साह बढ़े क्योंकि मेवाड़ के अतिरिक्त आर्यावर्त के समस्त नरेशों का पावागमन सदा राजधानी मागरे में होता रहता था, उनके चित्त पर अपनी उदार गुणग्राहकता का प्रभाव अंकित करने के निमित्त भी उक्त वीरोतेजक कार्य किया गया होगा, क्योंकि वे लोग प्रतिदिन उन वीर-प्रतिमाओं को देखकर विचारते होंगे कि जिन पुरुषों
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