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नागरीप्रचारिणी पत्रिका नाम कालीगाँव नहीं किंतु कलियुग संवत् होना चाहिए । उसका प्रारंभ भी ईसा से ठीक उतने ही वर्ष (३१०१) पूर्व समस्त भारतवर्ष में माना जाता है। इसी प्रकार तीसरी भूल जयमल्ल फत्ता के संबंध में की गई है, और यही मेरे लेख का मुख्य अभिप्राय है।
प्रभा के पृष्ठ ३१-३२ में अवस्थीजी लिखते हैं कि "तीसरा नगर भाटगाँव काठमांडू से ६ मील है, इस नगर की स्थिति राजा अनंगमल (ई० स० ८६५) के समय से है......यहाँ की जन-संख्या ३०००० है, इसके मध्य में जयमाल और फट्टा की दो छोटी छोटी प्रतिमाएँ हैं। ये दोनो नेपाली पुरुष बड़े वीर थे। यहाँ पर (भाटगांव में) और भी कई एक देवप्रतिमाएँ हैं"......क्त भूल का भी इतिहास से अपरिचित किसी मनुष्य के कथन से होना संभव है। उसने अज्ञान से दोनों को नैपाली वीर कह दिया होगा, और अवस्थी महाशय ने वैसा ही नाट कर लिया होगा, क्योंकि जयमाल फट्टा का नाम तक नैपाल के इतिहास में नहीं मिलता। उक्त दोनों मूर्तियाँ नेपाल के वीरों की नहीं, किंतु राजपूताना के इतिहासप्रसिद्ध जयमल और फत्ता ( पत्ता) की होनी चाहिएँ। अब रही नामों के उच्चारण की अशुद्धि, इसमें ऐसा अनुमान होता है कि उक्त अवस्थीजी ने सब दृश्यों के साथ मूर्तियों के नोट भी अँगरेजी अक्षरों में लिखे होंगे, परंतु अँगरेजी लिपि की अपूर्णता से जयमल और जयमाल दोनों शब्द एक ही प्रकार के अक्षरों में लिखे तथा पढ़े जाते हैं, जिससे जयमल का जयमाल पढ़ा गया हो। इसी प्रकार अँगरेजी अक्षरों में 'त' का अभाव होने से उसके स्थान में 'ट' अक्षर सदा लिखा और बोला जाता है।
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