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नागरीप्रचारिणी पत्रिका करने शुरू किए। उनके बहुत से मंदिर तथा मठ जला डाले और बहुत से छीन लिए। इसी समय में मंगोल विजेता चंगेज खाँ ने
तुर्क और मंगोल चीन, तिब्बत और भारतवर्ष की पश्चिमी जातियों में भारतीय सीमा तक समस्त मध्य एशिया को जीत सभ्यता
लिया। सन् १२२७ में उसकी मृत्यु के बाद उसका बेटा जगतई सिंहासनाधीश हुमा। जगतई सन् १२४१ में मर गया और उसके बाद मंगू को खान निर्वाचित किया गया। उसके छोटे भाई कुबलई ने दक्षिण चीन को भी अधिकृत कर लिया। सन् १२५६ में कुबलई स्वयं राजा हो गया। चंगेज खाँ तो अपनी लड़ाई और चढ़ाइयों के काम में इतना व्यस्त रहता था कि बौद्ध लोग उस तक अपनी फरियाद न पहुँचा सके। किंतु मंगृ खाँ और उसके भाई कुबलई खाँ के शासन में स्थिति बदल गई। बौद्धों ने मंगू खाँ से शिका यत की कि टाओ मतवाले हम पर बड़े अत्याचार करते हैं। मंग खाँ ने दोनों मतों के पंडितों के बीच में कई बड़े-बड़े शास्त्रार्थ कराए। अंत में फग्स पा१ नामी लामा ने टानी मतवालों को पूर्णतया पराजित कर दिया, और शर्त के अनुसार अठारह टाओ पंडितों को सर मुंडाकर बौद्ध धर्म ग्रहण करना पड़ा। फग्स पा का कुबलई खाँ पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसने बौद्ध धर्म को राजधर्म बना लिया और फग्स पा को बुलाकर राजमहंत के पद पर नियुक्त किया। तिब्बत के द्वारा भारतवर्ष और नेपाल की भिन्न भिन्न विद्याएँ तथा कलाएँ मध्य एशिया में मंगोलों के राज्य में पहुँची। सन्
(१) “फरस पा" आर्य शब्द का तिब्बती रूप है।
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