Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 20
________________ विशाल भारत के इतिहास पर स्थूल दृष्टि १५३ इन टोपियों से ऐसा प्रतीत होता है कि ये लोग न तो देवता हैं न मनुष्य, बल्कि शेषनाग की प्रजा में से हैं और संसार को शिवजी की लीला दिखाने पाए हैं। । ब्राह्मण लोग अखाड़े में दाखिल होकर प्रार्थना करना प्रारंभ करते हैं और एक आदमी झूले को हिलाना शुरू कर देता है। जब झोटे बढ़ने लगते हैं तब वे चार मनुष्य, जो तखते पर चढ़े होते हैं, देवताओं को नमस्कार करने के लिये नव जाते हैं। फिर धीरे धीरे झोटे इतने बढ़ जाते हैं कि झूला उस बाँस तक पहुँचने लगता है। तब भूलनेवालों में से एक मागे को झुककर रुपयों की पोटली अपने दाँतों से पकड़ लेता है। इस प्रकार तीन बार नए चार भूलनेवाले, नया तखता, नई पोटली इत्यादि सब बदलकर वही लीला की जाती है। खेल समाप्त होने पर यह बारह झूलनेवाले नादियों के सोंग लेकर तीन तीन बार नाचते हैं और अपने सोंगों को पानी में डुबोकर सब पर छिड़कते हैं। मुख्य पात्र अर्थात् जो इस उत्सव का राजा बनता है वह सब लीला को एक निश्चित 'प्रासन पर बैठा हुआ देखता रहता है। उसका बायाँ पैर जमीन पर रखा रहता है और दहना बाएँ घुटने पर। उत्सव के अंत तक उसे इसी प्रकार बैठना पड़ता है। इसके बाद ब्राह्मण जन स्तुतिगान करते हैं जिसको सुनने के पश्चात् भगवान् "फ्राईस्वेन" अपने देवताओं के साथ बिदा हो जाते हैं। तीसरे दिन फिर यह सब लीला इसी प्रकार दोहराई जाती है और तब यह उत्सव समाप्त हो जाता है। __यह उत्सव प्राचीन समय में सारे श्याम देश में मनाया जाता था। किंतु प्रब केवल बैंकाक में ही वसंत की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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