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नागरीप्रचारिणी पत्रिका लोकप्रिय हुआ। उसके अठारह पर्वो के आधार पर शीघ्र ही नाटकों की रचना हो गई। इनमें से कतिपय ग्रंथ, जो गद्य में महाराजा अरलंगा ( Erlangga) के काल अर्थात् ११वीं शताब्दो में लिखे गए थे, हाल ही में मिले हैं और हालैंड के डच विद्वानों ने उनको प्रकाशित भी कर दिया है। मलाया साहित्य : में इन उद्धृत प्रसंगों को "हिकायात पांडवा लीमा" कहते हैं।
केदिरी ( Kediri ) के राजा जयबाय के काल में उसके राजकवि पेनुलूह ( Penoolooh ) ने भी महाभारत के कतिपय अंशों का गद्यात्मक उल्था प्राचीन जावा की भाषा अर्थात् "कवी" ( Kavi poetry ) पद्य में किया था। यह ग्रंथ 'भारत युद्ध' माधुनिक जावी भाषा में ( Brata yuda) व्रतयुद कहाता है। महाभारत की कथाओं का इतना गहरा प्रभाव जावा-निवासियों पर पड़ा कि महाभारत के पात्रों तथा स्थानों को वे लोग अपने देश के ही मानने लगे और उनका यह विश्वास हो गया कि महाभारत का युद्ध जावा में ही हुआ था और जावा के राजा लोग प्राचीन पांडव तथा यादव वंशों से ही अपनो उत्पत्ति बतलाने लगे।
किंतु इस घटना के साथ साथ प्रारंभ से ही पुराने जावा, मलाया और पोलिनीशिया की पौराणिक कथाएँ भारतीय कथाओं के साथ मिलने लगी। अतएव मुसलमानों के आक्रमण तथा शासन के पहले युग में अर्थात् सन् १५०० ई० १७५८ तक, बड़ी विध्वंसकारी खड़ाइयों के कारण प्राचीन हिंदू रीति तथा मर्यादा कुछ पीछे पड़ गई। सन् १७५० के बाद जावा का "पुनरुज्जीवन" हुआ और तब से वहाँ के प्राचीन हिंदू साहित्य का पुनरुत्थान करने के लिये बड़ा
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