Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 24
________________ विशाल भारत के इतिहास पर स्थूल दृष्टि १५७ : प्रयत्न शरू हुमा। परंतु "कवी" अर्थात् जावा की पुरानी भाषा इस समय पूरी तरह नहीं पढ़ी जाती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि इस समय जो ग्रंथ लिखे गए उनमें बड़ी विचित्र विचित्र अशुद्धियाँ घुस गई, यद्यपि ये सब पुस्तकें पुराने ग्रंथों के आधार पर ही लिखी गई थों जो १८वीं शताब्दी में जावा में मिलते थे। अंत में इन तमाशा करनेवालों ने (अर्थात् दालंगों ने ) स्वयं भी कुछ परिवर्तन कर दिए; क्योंकि वे अपने खेलों को अधिक रुचिकर तथा प्रिय बनाने के लिये पुरानी कथाओं की परिस्थिति को समयानुकूल बनाते जाते थे। ___ तमाशा करते समय "दालंग," "लाकोन" ( Lakons) में देखता जाता है जिससे भूल न जाय । ये लाकोन छोटे छोटे नाटक होते हैं। दालंग कुछ नई बातें तुरंत भी गढ़ देता है जिससे श्रोताओं की मनस्तुष्टि हो। इन संक्षिप्त नाटकों के अतिरिक्त बड़ी बड़ी पुस्तकें भी होती हैं। इन नाटकों को ४ वर्गों में रखा गया हैं। देवताओं, राक्षसों तथा वीरों की उत्पत्ति की कथाएँ, जो महाभारत के प्रादिपर्व से ली गई हैं, इन कथाओं में मालय-पोलिनेशी गाथाओं का काफी मिलाव है। अंतिम किंतु सबसे अधिक महत्त्व-पूर्ण कथासमह का विषय है पांडवों तथा कौरवों की कथाएँ। महाभारत के आधार पर रचित ऐसे लाकोन कोई १५० होंगे जिनमें से पाठ में पांडवों के पूर्वजो का वर्णन है। महाभारत में तो पांडवों का देश निकाला तथा पर्यटन "जतुगृह" घटना के बाद शुरू होता है । तब इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होता है। इसके पीछे चौपड़ खेलने की घटना होती है और पांडव फिर वनवास को जाते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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