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नागरीप्रचारिणी पत्रिका इन जातियों के द्वारा चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार ईसा की पहली शताब्दी में ही हो गया था, किंतु भारतवर्ष से चीन
___ का सीधा संबंध चौथी शताब्दी के अंत चीन से संबंध
' में फाहियान के बाद से प्रारंभ होता है। इस समय से बौद्ध धर्म के कई मुख्य मुख्य ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ, जैसे धर्मपद, मिलिंदपद इत्यादि । फा-हियान भारतवर्ष में कोई १५ वर्ष रहा और देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक घूमा। उसने पाटलिपुत्र में रेवती नामक बौद्ध विद्वान् से शिक्षा ग्रहण की और लंका में जाकर धर्म प्रचार किया। फा-हियान के अतिरिक्त इस समय अन्य बहुत से भक्त चीन से गोबी रेगिस्तान, खुतन और पामीर के भयानक पहाड़ी रास्तों से इस देश में आते रहे। फा-हियान भी इसी मार्ग से पाया था। वह तक्षशिला, पुरुषपुर (पेशावर) इत्यादि विद्यापीठों में घूमा, तीन वर्ष पाटलिपुत्र में ठहरकर बौद्ध धर्म का अध्ययन करता रहा और अंत में लंका, जावा इत्यादि होता हुआ चीन लौट गया। ___इसी समय एक विद्वान् कुमारजीव ने बौद्ध धर्म को चीन में फैलाने में बड़ा भारी काम किया। कुमारजीव का पिता एक भारतीय था। युवा अवस्था में वह काश्मीर में जा बसा। वहाँ उसने उस देश की राजपुत्री से विवाह किया। इनका पुत्र कुमारजीव हुआ। कुमारजीव की माता अपने पुत्र को शिक्षा दिलाने के लिये भारत में प्राई। युवक कुमारजीव बौद्ध हो गया और चीन में जाकर उसने बौद्ध ग्रंथों के अनुवाद करने के लिये एक मठ स्थापित किया। यह बड़ा तीक्ष्णबुद्धि तथा प्रकांड पंडित था। इसके सफलीभूत कार्य ने चीन
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