Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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ग्रन्थ की कथावस्तु एवं उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि किया गया। किसी प्रकार वहाँ से छुटकर वह भेरुण्ड पक्षियों द्वारा समुद्र में गिरा दिया गया। जब वह किनारे लगा तो उसे अपने कार्यों पर बड़ी ग्लानि हुई। जब वह प्रायश्चित्त करने गंगा की ओर जा रहा था तो रास्ते में मुनि धर्मनन्दन के उपदेशों को सुनकर उसने वहीं दीक्षा ले ली। मोह : मोहदत्त की कथा
कौशल नगरी का राजा कौशल था। उसके पुत्र का नाम तोसल था जो स्वतन्त्रतापूर्वक नगर में भ्रमण किया करता था। एक दिन तोसल ने नगरश्रेष्ठि के महल में गवाक्ष पर बैठी हुई उसकी सुन्दरी पुत्री सुवर्णा को देखा। उनमें परस्पर प्रेम हो गया। अवसर पाकर तोसल रात्रि में उससे मिलने उसके कक्ष में गया। सुवर्णा ने बताया कि उसका पति हरदत्त व्यापार करने लंका गया था, किन्तु बारह वर्ष हो गये अभी तक नहीं लौटा। वह अकेलेपन के कारण मरने को तैयार थी, किन्तु तभी उसने राजकुमार को देखा अतः वह उसी की शरण में है। तोसल ने उसे अपनी प्रेमिका बना लिया। कुछ समय बाद सुवर्णा गर्भवती हो गयी। पता चलने पर नगरश्रेष्ठी ने राजा से शिकायत की। राजा ने तोसल को मार डालने की आज्ञा दे दी। किन्तु मन्त्री की चतुराई से तोसल पाटलिपुत्र भाग गया और वहाँ जयवर्मन् राजा के यहाँ नौकर हो गया ।
सुवर्णा को जब ज्ञात हुआ कि तोसल को मार डाला गया है तो वह भी मरने के लिए नगर से भाग निकली । एक सार्थ के साथ पाटलिपुत्र के लिए चल पड़ी। गर्भभार के कारण वह सार्थ से पीछे रह गयी और जंगल में उसने एक साथ दो बच्चों को जन्म दिया-एक पुत्र, एक पुत्री को। यद्यपि वह मरने के लिए निकली थी, किन्तु अब उसने बच्चों के लिए जीवित रहने का निश्चय कर लिया । उसने अपने उत्तरीय के दोनों छोरों पर दोनों बच्चों को बाँध दिया और स्वयं प्रसव का रक्त आदि धोने के लिए झरने की ओर चली गयी। इधर एक बाघ बच्चों की पोटली को उठाकर ले गया। रास्ते में लड़की पोटली से छुटकर गिर गई , जिसे रास्ते में जाते हुए जयवर्मन् का संदेशवाहक उठाकर अपने घर पाटलिपुत्र ले गया। उसका नाम वनदत्ता रखा गया। लड़के को जयवर्मन् का कोई सम्बन्धो बाघ से छुड़ाकर ले गया। पाटलिपुत्र में उसका नाम व्याघ्रदत्त अथवा मोहदत्त रखा गया। कुछ समय बाद सुवर्णा भी पाटलिपुत्र पहुँच गई और संयोग से वनदत्ता की धात्री के रूप में अपनी पुत्री को न पहचानते हुए संदेशवाहक के घर में काम करने लगी।
क्रमशः मोहदत्त एवं वनदत्ता यौवन को प्राप्त हुए। मदनमहोत्सव के अवसर पर दोनों ने परस्पर एक-दूसरे को देखा और प्रेमबन्धन में बंध गये। राजकुमार तोसल की भी नजर वनदत्ता पर पड़ी और वह उसे चाहने लगा। वनदत्ता की तरफ से कोई उत्तर न मिलने पर तोसल ने उसे तलवार के बल पर पाना चाहा । मोहदत्त ने तोसल को वहीं उद्यान में मार डाला और वनदत्ता