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किसने कहा मन चंचल है दार्शनिकों ने कहा-वायु जीव है। कुछ दार्शनिकों ने कहा-वायु जीव नहीं है । वायु को जीव स्वीकार करने वालों ने तर्क दिया कि वायु गतिमान् है, इसलिए जीव है । फिर प्रश्न हुआ कि पुद्गल भी गतिमान है, वह भी जीव होना चाहिए। फिर कहा गया कि केवल गतिमान होने से ही जीव नहीं होता । वायु दूसरे के द्वारा प्रेरित होकर गति नहीं करता, वह स्वतः गतिमान है । पुद्गल स्वतः गतिशील नहीं है । वह दूसरे की प्रेरणा से गतिशील है। वह दूसरे की प्रेरणा से गतिशील है, इसलिए वह जीव नहीं है। जिसमें गति करने की इच्छा है, गति की स्वतः प्रेरणा है, वह जीव है। एक ढेला फेंका। वह भी गति करेगा। एक गोली दागी। वह भी बहुत दूर तक गति करेगी। यह स्व-प्रेरित गति नहीं है। यह पर-प्रेरित गति है। जो स्व-प्रेरित गति करता है वह प्राणी हो सकता है।
___ जीव का बहुत बड़ा लक्षण है-इच्छाशक्ति और संकल्पशक्ति । यह जीव की पहचान है। जिसमें संकल्पशक्ति नहीं होती, वह जीव नहीं हो सकता । सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों में, चाहे फिर वे पृथ्वी के हों या वनस्पति के, उनमें भी इच्छाशक्ति होती है, संकल्पशक्ति होती है।
शक्ति का एक रूप है-संकल्पशक्ति, एक रूप है—एकाग्रता, एक रूप है-नियामक शक्ति ।
हमारे शरीर की शक्ति का केन्द्र है-नाड़ी-संस्थान । शरीर में यदि नाड़ी-संस्थान न हो तो शरीर का कोई बहुत बड़ा मूल्य नहीं है । कुछ भी मूल्य नहीं है । नाड़ी-संस्थान में ज्ञानवाही और क्रियावाही–दोनों प्रकार के नाड़ी-मंडल हैं। यदि इन दोनों प्रकार के नाड़ी-मंडलों को निकाल दिया जाए तो न ज्ञान होगा और न क्रिया होगी।
हमारी चेतना और शक्ति- इन दोनों के संभाव्य केन्द्र इस नाड़ीसंस्थान में हैं । आप यह न भूलें कि हमारे अस्तित्व के दो मूल स्रोत हैंचेतना और शक्ति । उनका संवादी केन्द्र है हमारा स्थूल शरीर । सूक्ष्म शरीर में जो स्पंदन होंगे, उनके संवादी केन्द्र इस स्थूल शरीर में हैं। बिना संवादी केन्द्रों के अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। अभिव्यक्ति के लिए माध्यम चाहिए। क्योंकि जब भीतर से बाहर आना होता है तब वह बिना माध्यम के नहीं हो सकता । यह माध्यम है-नाड़ी-संस्थान । वह ज्ञानावाही नाड़ी-मंडल के द्वारा आत्म-चेतना को अभिव्यक्त करता है तथा क्रियावाही नाड़ी-मंडल के द्वारा आत्म-शक्ति को अभिव्यक्त करता है।
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