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किसने कहा मन चंचल हैं
को प्रवाहित करने से बुरे परिणाम आ सकते है। यदि यह सारा स्पष्ट हो जाए तो हम हमारी सारी वृत्तियों पर नियंत्रण पा सकते हैं। और तब हम अपनी इच्छानुसार शुभ लेश्याओं में प्रवेश कर सकते हैं, अशुभ लेश्याओं से दूर रह सकते हैं । किन्तु यह स्थिति अन्वेषण-सापेक्ष है।
आज ऐसे वैज्ञानिकों की आवश्यकता है जिनकी अध्यात्म में आस्था हो, रुचि हो और जिन में साथ ही साथ वैज्ञानिक पद्धति का स्पष्ट बोध हो, वैज्ञानिक तथ्यों की अवगति हो । ऐसे वैज्ञानिक यदि शरीर के प्रत्येक अवयव की छानबीन करें, आत्मा के परिणाम की दृष्टि से और वृत्ति की दृष्टि से, तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। इसके फलस्वरूप अनेक नए-नए तथ्य सामने आ सकते हैं।
____ मैंने एक प्राचीन ग्रंथ देखा। वह गुजराती-मिश्रित राजस्थानी भाषा में लिखा हुआ था। उसमें कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रतिपादित थे। पता नहीं लेखक ने उन तथ्यों का अनुभव कर फिर उनको लिपिबद्ध किया या किन्हीं दूसरे ग्रन्थों के आधार पर उन्हें लिखा। कुछ भी हो, वह ग्रन्थ कुछेक नई जानकारी प्रस्तुत करता है। उसमें लिखा है-नाभि कमल की अनेक पंखुड़ियां हैं । जब आत्म-परिणाम अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब क्रोध की वृत्ति जागती है, जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब मान की वृत्ति जागती है, जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब माया की वृत्ति जागती है, जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब वासना उत्तेजित होती है और जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब लोभ की वृत्ति उभरती है।
जब आत्म-परिणाम नाभि-कमल से ऊपर उठकर हृदय-कमल की पंखुड़ियों पर जाता है तब समता की वृत्ति जागती है, ज्ञान का विकास होता है, अच्छी वृत्तियां उभरती हैं।
जब आत्म-परिणाम दर्शन-केन्द्र पर पहुंचता है तब चौदह पूर्वो के ग्रहण करने की क्षमता जागती है।
जब आत्म-परिणाम ज्ञान-केन्द्र पर पहुंचता है तब केवल ज्ञान की क्षमता जागृत हो जाती है । अमुक स्थान पर आत्म-परिणाम पहुंचता है तो अवधिज्ञान की क्षमता जागती है ।
यह सारा प्रतिपादन किस आधार पर किया गया है-यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । किन्तु इस प्रतिपादन में एक बहुत बड़ी सचाई का उद्घाटन होता है कि शरीर में अनेक संवादी केन्द्र हैं । इन केन्द्रों पर मन
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